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महानिशीथ-७/-/१३८२
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सामने चाहे वैसे शब्द सुनाए, गच्छनायक की किसी तरह से हलकी लघुता करे, गच्छ के आचार, संघ के आचार, वंदन प्रतिक्रमण आदि मंड़ली के धर्म का उल्लंघन करे, अविधि से दीक्षा दे, वड़ी दीक्षा दे, अनुचित को सूत्र, अर्थ या तदुभय की प्ररूपणा करे, अविधि से सारणा-वारणा-चोयणा पड़िचोयणा करे या विधि से सारणा - वारणा - चोयणा-पड़िचोयणा न करे, उन्मार्ग की ओर जानेवाले को यथाविधि से सारणादिक न करे यावत् समग्र लोक के सान्निध्य मे अपने पक्ष को गुण करनेवाला, हित, वचन, कर्मपूर्वक न कहे तो हर एक में क्रमिक कुल, गण और संघ के बाहर नीकालना । बाहर करने के बाद भी वो काफी घोर वीर तप का अनुष्ठान करने में काफी अनुरागवाला हो जाए तो भी हे गौतम! वो न देखने के लायक है, इसलिए कुल गण और संघ के बाहर किए गए उसके पास पल, आँधा पल, घटी या अर्ध घटीका जितने वक्त के लिए भी न रहना ।
आँख से नजर किए बिना यानि जिस स्थान पर परठवना हो उस स्थान की दृष्टि प्रतिलेखना किए बिना ठल्ला, पेशाब, बलखा, नासिक मेल, श्लेष्म, शरीर का मेल परठवे, बैठते संडासग जोड़ सहित प्रमार्जना न करे, तो उसे क्रमिक नीवी और आयंबिल प्रायश्चित् । पात्रा, मात्रक या किसी भी उपकरण दंड आदि जो कोइ चीज स्थापन करते, रखते, लेते, ग्रहण करते, ते अविधि से स्थापन करे, रखे ले ग्रहण करे या दे, यह आदि अभावित क्षेत्र में करे तो चार आयंबिल और भावित क्षेत्र में उपस्थापन, दंड, रजोहरण, पादप्रोंछनक भीतर पहनने का सूती कपड़ा, चोलपट्टा, वर्षा कल्प कँबल यावत् मुहपत्ति या दुसरे किसी भी संयम में जरुरी ऐसे हरएक उपकरण प्रतिलेखन किए बिना, दुष्प्रतिलेखन, किए हो, शास्त्र में बताए प्रमाण से कम या ज्यादा इस्तेमाल करे तो हरएक स्थान में क्षपण उपवास का प्रायश्चित् । ऊपर के हिस्से में पहनने का कपड़ा, रजोहरण, दंड़क अविधि से इस्तेमाल करे तो उपवास, अचानक रजोहरण ( कुल्हाड़ी की तरह) खंभे पर स्थापन करे तो उपस्थापन शरीर के अंग- उपांग पुरुषन करवाए तो उपवास, रजोहरण को अनादर से पकड़ना चऊत्थं, प्रमत्त भिक्षु की लापरवाही से अचानक मुहपति आदि कोइ भी संयम के उपकरण गुम हो जाए, नष्ट हो तो उसके उपवास से लेकर उपस्थापन, यथायोग्य गवेषणा करके ढूँढे, मिच्छामि दुक्कड़म् दे, न मिले तो वोसिरावे, मिले तो फिर से ग्रहण करे ।
भिक्षु को अपकाय और अनिकाय के संघट्टण आदि एकान्त में निषेध किया है । जिस किसी को ज्योति या आकाश में से गिरनेवाली बारिस की बुँद से उपयोग सहित या रहित अचानक स्पर्श हो जाए तो उसके लिए आयंबिल कहा है । स्त्री के अंग के अवयव को सहज भी हाथ से, पाँव से, दंड़ से, हाथ में पकड़े तिनके के अग्र हिस्से से या खंभे से संघट्टा करे तो पारंचित्त प्रायश्चित् । बाकी फिर अपने स्थान से विस्तार से बताए जाएगे ।
[१३८३-१३८४] ऐसे करते हुए भिक्षा का समय आ पहुँचा । हे गौतम ! इस अवसर पर पिंड़ेसणा-शास्त्रमें बताए विधि से दीनता रहित मनवाला भिक्षु बीज और वनस्पतिकाय, पानी, कीचड़, पृथ्वीकाय को वर्जते, राजा और गृहस्थ की ओर से होनेवाले विषम उपद्रवकदाग्रही को छोड़नेवाला, शंकास्थान का त्याग करनेवाला । पाँच समिति, तीन गुप्ति में उपयोगवाला, गोचरचर्या में प्राभृतिक नाम के दोषवाली भिक्षा का वर्जन न करे तो उसको चोथभक्त प्रायश्चित् । यदि वो उपवासी न हो तो स्थापना कुल में प्रवेश करे तो उपवास,
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