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महानिशीथ-५/-/८१९
उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए ।
[८२०] हे भगवंत ! वो भावाचार्य कब-से कहलाएंगे? हे गौतम ! आज दीक्षित हुआ हो फिर भी आगमविधि से पद को अनुसरण करके व्यवहार करे वो भावाचार्य कहलाते है । जो सो साल के दीक्षित होने से बावजूद भी केवल वचन से भी आगम की बाधा करते है उनके नाम और स्थापना आचार्य में नियोग करना ।।
हे भगवंत ! आचार्य को कितना प्रायश्चित् लगता है ? जो प्रायश्चित् एक साधु को मिले वो प्रायश्चित् आचार्य या गच्छ के नायक, प्रवर्तनी को सत्तरह मुना मिलता है । यदि शील का खंडन हो तो तीन लाख गुना । क्योंकि वो काफी दुष्कर है लेकिन सरल नहीं है । इसलिए आचार्य को और गच्छ के नायक को प्रवर्तिनी को अपने पच्चक्खाण का अच्छी तरह से रक्षण करना चाहिए । अस्खलित शीलवाला बनना चाहिए ।
हे भगवंत ! जो गुरु अचानक किसी कारण से, किसी वैसे स्थान में गलती करे, स्खलना पाए उसे आराधक माने कि नहीं । हे गौतम ! बड़े गुण में व्यवहार रखते हो वैसे गुरु अस्खलित शीलयुक्त अप्रमादी आलस बिना सर्व तरह के आलम्बन रहित, शत्रु और मित्र पक्ष में समान भाववाले, सन्मार्ग के पक्षपाती धर्मोपदेश देनेवाले, सद्धर्मयुक्त हो इससे वो उन्मार्ग के देशक अभिमान करने में रक्त न बने सर्वथा सर्व तरह से गुरु को अप्रमत्त बनना चाहिए, लेकिन प्रमत्त नहीं बनना चाहिए । यदि कोई प्रमादी बने तो वो काफी बूरे भावी और असुंदर लक्षणवाले समजना, इतना ही नहीं लेकिन न देखनेलायक महापापी है, ऐसा समजना।
___यदि वो सम्यक्त्व के बीजवाले हो तो वो खुद को दुश्चरित्र को जिस प्रकार हुआ हो उस प्रकार अपने या दुसरो के शिष्य समुदाय को कहे कि मैं वाकईं दुरंत पंत लक्षणवाला, न देखने लायक, महापाप कर्म करनेवाला हूँ । मैं सम्यग् मार्ग को नष्ट करनेवाला हूँ । ऐसे खुद की बुराई करके गुरु के सामने गर्दा करके उकी आलोचना करके जिस प्रकार शास्त्र में कहा हो उस प्रकार प्रायश्चित् का सेवन कर दे तो वो कुछ आराधक बने । यदि वो शल्य रहित, माया कपट रहित हो तो, वैसी आत्मा सन्मार्ग से चूकती नहीं । शायद सन्मार्ग से भ्रष्ट हो तो वो आराधक नहीं होती ।
[८२१] हे भगवंत ! कैसे गुणयुक्त गुरु हो तो उसके लिए गच्छ का निक्षेप कर शकते है ? हे गौतम ! जो अच्छे व्रतवाले, सुन्दर शीलवाले, दृढ़ व्रतवाले, दृढ़ चारित्रवाले, आनन्दित शरीर के अवयववाले, पूजने के लायक, राग रहित, द्वेष रहित, बड़े मिथ्यात्व के मल के कलंक जिसके चले गए है वैसे, जो उपशान्त है, जगत की दशा को अच्छी तरह से पहचानते हो, काफी महान वैराग में लीन हो, जो स्त्रीकथा के खिलाफ हो, जो भोजन विषयक कथा के प्रत्यनीक हो, जो चोर विषयक कथा के खिलाफ हो, जो काफी अनुकम्पा करने के स्वभाववाले हो, जो परलोक का नुकशान करनेवाले ऐसे पापकार्य करने से डरनेवाले, जो कुशील के खिलाफ हो, शास्त्र के रहस्य के जानकार हो, ग्रहण किए गए शास्त्र में सारवाले, रात-दिन हरएक समय क्षमा आदि अहिंसा लक्षणवाले दश तरह के श्रमण धर्म में रहे हो, बारह तरह के तप में उद्यमवाले हो, हमेशा पाँच समिति और तीन गुप्ति में उपयोगवाले हो, जो अपनी शक्ति के अनुसार अठ्ठारह हजार शीलांग की आराधना करते हो, १७ तरह के संयम की विराधना न करते हो, जो उत्सर्ग मार्ग की रुचिवाले हो, तत्त्व की रूचिवाले हो, जो शत्रु और मित्र दोनो