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महानिशीथ-६/-/१०५१
है । यहाँ खास बात तो यह ध्यान में रखनी कि नियम रहित हो, परदारा गमन करनेवाला हो, उनको कर्मबंध होता है । और जो उसकी निवृत्ति करता है । पञ्चक्खाण करता है, उन्हें महाफल की प्राप्ति होती है ।
[१०५२-१०५३] पाप की हुई निवृत्ति को यदि कोई अल्प प्रमाण में भी विराधना करे, केवल मन से ही विराधना करे तो जिस तरह से मेघमाला नाम की आर्या मरके दुर्गति में गइ उस प्रकार मन से अल्प भी व्रत की विराधना करनेवाला दुर्गति पाता है । हे भुवन के बँधव ! मन से भी अल्प प्रत्याख्यान का खंडन करके मेघमाला से जो कर्म उपार्जन किया। और दुर्गति पाई वो मैं नहीं जानता ।
[१०५४] बारहवें वासुपूज्य तीर्थंकर भगवंत के तीर्थ में भोली काजल समान शरीर के काले वर्णवाली दुर्बल मनवाली मेघमाला नाम की एक साध्वी थी ।
[१०५५-१०५८] भिक्षा ग्रहण करने के लिए बाहर नीकलकर दुसरी ओर एक सुन्दर मकान पर एक स्त्री बैठी थी । वो पास के दुसरे मकान से लंघन करके जाने की अभिलाषा करती थी । तब इस साध्वीने मन से उसे अभिनन्दन करके इतने में वो दोनों जल उठी, उस साध्वीने अपने नियम का सूक्ष्म भंग हुआ उसकी वहाँ नींदा नहीं की । उस नियम के भंग के दोष से जलकर पहले नरक में गइ । इस प्रकार समजकर यदि तुमको अक्षय, अनन्त, अनुपम सुख की अभिलाषा हो तो अतिना के नियम या व्रत की विराधना मत होने देना ।
[१०५९-१०६१] तप, संयम या व्रत के लिए नियम दंडनायक कोटवाल समान है । उस नियम को खंडित करनेवाले को व्रत या संयम नहीं रहते । मछवारा पूरे जन्म में मछलियां पकड़कर जो पाप बाँधता है उससे ज्यादा तो व्रत के भंग की ईच्छा रखनेवाले आँठ गुना पाप बाँधते है । अपने देश की शक्ति या लब्धि से दुसरों की उपशान्त करे और दीक्षा ले तो अपने व्रत को खंड़ित न करते हुए उतने पुण्य का उपार्जन करनेवाला होता है।
[१०६२] गृहस्थ संयम और तप के लिए प्रवृत्ति करनेवाला और पाप की निवृत्ति करनेवाला होता है । जब तक वो दीक्षा अंगीकार नहीं करते तब तक जो कुछ भी धर्मानुष्ठान करे उसमें उनका फायदा होता है ।
[१०६३-१०६४] साधु-साध्वी के वर्ग को यहाँ समज लेना चाहिए कि हे गौतम ! उश्वास निश्वास के अलावा दुसरी किसी भी क्रिया गुरु की परवानगी के सिवा करना। वो भी जयणा से ही करने की आज्ञा है । अजयणा से नहीं । अजयणा से साँस लेने-रखने का सर्वथा नहीं होता । अजयणा से साँस लेनेवाले को तप या धर्म कहाँ से मिले ?
[१०६५-१०६९] हे भगवंत ! जितना देखा हो या जाना हो तो उसका पालन उतने प्रमाण में किस तरह कर शके ? जिन्होंने अभी परमार्थ नहीं जाना, कृत्य और अकृत्य के जानकार नहीं है । वो पालन किस तरह कर शकेंगे ? हे गौतम ! केवली भगवंत एकान्त हीत वचन को कहते है । वो भी जीव का हाथ पकड़कर बलात्कार से धर्म नहीं करवाते । लेकिन तीर्थंकर भगवान के बताए हुए वचन को 'तहत्ति' कहने के लायक जो उसके अनुसार व्यवहार करते है, उनके चरण में हर्ष पानेवाले इन्द्र और देवता के समुदाय प्रणाम करते है । जिन्होंने अभी तक परमार्थ नहीं जाना, कृत्याकृत्य का विवेक नहीं पहचाना । वो अंधे के पीछे अंधा चलता जाए और गड्ढा-टेकरी पानी है या भूमि है कीचड़ है या पथ्थर है । उसका भान नहीं