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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[१२०९-१२१४] और फिर वो ब्याहता स्त्री चिन्तवन करने लगी कि जीवनभर खड़ी न हो शके वैसे उसे ड्राम दूँ कि सौ भव तक मेरे प्रियतम को याद न करे । तब कुम्हार की शाला में से लोहे का कोष बनाकर लाल रंग बने उतना तपाकर तणखे झरते हो वैसा बनाकर उसकी योनि में उसे जोर से घुसेड़कर उस प्रकार इस भारी दुःख की वजह से अक्रान्त होनेवाली वहाँ मरके हे गौतम! चक्रवर्ती की स्त्री रत्न के रूप में पेदा हुई । इस ओर रंड़ापुत्र की बीवी ने उसके क्लेवर में जीव न होने के बावजुद भी रोष से छेदन करके छोटे-छोटे टुकड़े किए और उसके बाद श्वान - कौआ आदि को खाने के लिए हरएक दिशा में फेंका । उतने में बाहर गया हुआ रंड़ापुत्र भी घर आ पहुँचा । वो मन में विकल्प करने लगा । साधु के चरण कमल में पहुँचकर दीक्षा अंगीकार करके मोक्ष में गया ।
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[१२१५-१२१९] अब लक्ष्मणा देवी का जीव खंडोष्ठीपन में से स्त्रीरत्न होकर हे गौतम ! फिर उसका जीव छठ्ठी नारकी में जा पहुँचा । वहाँ नारकी का महाघोर काफी भयानक दुःख त्रिकोण नरकावास में दीर्घकाल तक भुगतकर यह आया हुआ उसका जीव तिर्यंच योनि में श्वान के रूप में पेदा हुआ । वहाँ काम का उन्माद हुआ । इसलिए मैथुन सेवन करने लगी। वहाँ बैल ने योनि में लात लगाई और चोट आई योनि बाहर नीकल पड़ी और उसमें दश साल तक कृमि पेदा होकर उसे खाने लगे । वहाँ मरके हे गौतम! निन्नानवे बार कच्चे गर्भ में पेदा होकर गर्भ की वेदना में पकी ।
[१२२०-१२२६] उसके बाद जन्म से दरिद्रतावाले मानव के घर जन्म हुआ लेकिन दो महिने के बाद उसकी माँ मर गई । तब उसके पिता ने घर-घर घुमकर स्तन पान करवाके महक्लेश से जिन्दा रखा । फिर उसे गोकुल में गोपाल की तरह रखा । वहाँ गाय के बछड़े अपनी माँ का दूध पान करते हो उन्हें रस्सी से बाँधकर गाय को दोहता हो उस वक्त जो अंतराय कर्म उपार्जन किया उस कर्म की वजह से लक्ष्मणा के जीव ने कोड़ाकोड़ी भवांतर तक स्तनपान प्राप्त न किया । रस्सी से बँधा हुआ, रूकते हुए, बेड़ी से जकड़े हुए, दमन करते हुए माँ आदि के साथ वियोग पाते हुए भव में काफी भटका, उसके बाद मानव योनि में डाकण स्त्री के रूप में पेदा हुआ । वहाँ श्वानपालक उसे घायल करके चले गए । वहाँ से मरकर यहाँ मानवपन प्राप्त करके शरीर के दोष से इस महा पृथ्वी मंड़ल में पाँच घरवाले गाँव में- नगर शहर या पट्टण में एक व्होर आधा प्होर एक पल भी सुख न पाया ।
[१२२७-१२३२] हे गौतम! उस मानव में भी नारकी के दुःख समान कई रूलानेवाले घोर दुःख महसूस करके उस लक्ष्मणा देवी का जीव अति रौद्र ध्यान के दोष से मरकर साँतवीं नारक पृथ्वी में खाड़ाहड़ नाम के नरकावास में पेदा हुआ । वहाँ उस तरह के महादुःख का अहेसास करके तैतीस सागरोपम की आयु पूर्ण करके वंध्या गाय के रूप में पेदा हुआ । पराये खेतर और आँगन में घुसकर उसका नुकशान करते हुए झाड़ी तोड़कर चारा खाती थी । तब कई लोग इकट्ठे होकर नीकल न शके वैसे कीचड़वाली जगह में ले गए, इसलिए उसमें फँस गई और अब बाहर नहीं नीकल शकती । उसमें फँसी हुई वो बेचारी, गाय को जलचर जीव खाते थे । और कौओ - गीधड़ चोंच से मारते थे । क्रोध से व्याप्त उस गाय का जीव मरकर जल और धान्य रहित मारवाड़ देश के रण में दष्टिविष साँप के रूप में पेदा हुआ । वो सर्प के भव में से फिर पाँचवी नरक पृथ्वी में पहुँचा ।