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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद आलोचना करनी या दुसरों के पास करवानी और फिर हमेशा गुरु महाराज ने बताए प्रायश्चित् के अनुसार प्रायश्चित् आचरण करे ।
[१०३१-१०३५] हे भगवंत् ! उसका चोक्कस प्रायश्चित् कितना होगा ? प्रायश्चित् लगने के स्थानक कितने और कौन-से है ? वो मुजे बताओ । हे गौतम ! सुन्दर शीलवाले श्रमण को स्खलना होने से आए हुए प्रायश्चित् करते संयती साध्वी को उससे ज्यादा नौ गुना प्रायश्चित् आता है, यदि वो साध्वी शील की विराधना करे तो उसे सौ गुना प्रायश्चित् आता है । क्योंकि सामान्य से उसकी योनि के बीच में नौ लाख जीव निवास कर रहे है । उन सबको केवली भगवंत देखते है । उन जीव को केवल केवलज्ञान से देख शकते है । अवधिज्ञानी देखते है लेकिन मनःपर्यवज्ञानी नहीं देख शकते ।
[१०३६] वो साध्वी या कोई भी स्त्री-पुरुष के संसर्ग में आ जाए तो (संभोग करे तो) घाणी में जैसे तल पीसते है उस तरह उस योनि में रहे सर्व जीव रतिक्रीड़ा में मनोन्मत हुए तब योनि में रहे पंचेन्द्रिय जीव का मंथन हुआ है । भस्मीभूत होता है ।
[१०३७-१०४१] स्त्री जब चलती है तब वो जीव गहरा दर्द पाते है । पेशाब करते है तब दो या तीन जीव मर जाते है । और बाकी के परिताप दुःख पाते है । हे गौतम ! प्रायश्चित् के अनगिनत स्थानक है, उसमें से एक भी यदि आलोवण रहित रह जाए और शल्यसहित मर जाए तो, एक लाख स्त्रीयो का पेट फाड़कर किसी निर्दय मानव साँत, आँठ महिने के गर्भ को बाहर नीकाले, वो तिलमिलाता हुआ गर्भ जो दुःख महसूस करता है उसके निमीत से उस पेट फाडनेवाले मानव को जितना पाप लगे उससे ज्यादा एक स्त्री के साथ मैथुन प्रसंग में साधु नौ गुना पाप बाँधता है । साध्वी के साथ साधु एक बार मैथुन सेवन करे तो हजार गुना, दुसरी बार सेवन करे तो करोड़ गुना और तीसरी बार मैथुन सेवन करे तो बोधि-सम्यकत्व का नाश होता है ।
[१०४२-१०४३] जो साधु स्त्री को देखकर मदनासक्त होकर स्त्री के साथ रतिक्रीड़ा करनेवाला होता है वो बोधिलाभ से भ्रष्ट होकर बेचारा कहाँ पेदा होगा । संयत साधु या साध्वी जो मैथुन सेवन करता है वो अबोधि लाभ कर्म उपार्जन करता है । उसके द्वारा अपकाय और अग्निकाय में पेदा होने के लायक कर्म बाँधता है ।
[१०४४-१०४९] इस तीन में अपराध करनेवाला हे गौतम ! उन्मार्ग का व्यवहार करते थे और सर्वथा मार्ग का विनाश करनेवाला होता है । हे भगवंत ! इस दृष्टांत से जो गृहस्थ उत्कट मदवाले होते है । और रात या दिन में स्त्री का त्याग नहीं करते उसकी क्या गति होगी? वो अपने शरीर के अपने ही हस्त से छेदन करके तल जितने छोटे टुकड़े करके अग्नि में होम करे तो भी उनकी शुद्धि नहीं दिखती । वैसा भी यदि वो पर स्त्री के पच्चक्खाण करे और श्रावक धर्म का पालन करे तो मध्यम गति प्राप्त करे । हे भगवंत ! यदि संतोष रखने में मध्यम गति हो तो फिर अपने शरीर का होम करनेवाला उसकी शुद्धि क्यों न पाए ? हे गौतम ! अपनी या पराई स्त्री हो या स्वपति या अन्य पुरुष हो उसके साथ रतिक्रीड़ा करनेवाला पाप बँध करनेवाला होता है । लेकिन वो बंधक नहीं होता ।
[१०५०-१०५१] यदि किसी आत्मा कहा गया श्रावक धर्म पालन करता है और परस्त्री का जीवन पर्यन्त त्रिविध से त्याग करते है । उसके प्रभाव से वो मध्यम गति पाता