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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
करके आज भी बोधि- सच्चा मार्ग नहीं पा शकते । दुसरे भी अनन्त बार चार गति रूप भव में और संसार में परिभ्रमण करेंगे लेकिन बोधि की प्राप्ति नहीं करेगे । और लम्बे अरसे तक काफी दुःख पूर्ण संसार में रहेंगे । हे गौतम! चौदराज प्रमाण लोक के बारे में बाल की किनार की जितना भी प्रदेश नहीं है कि जहाँ इस जीव ने अनन्ता मरण प्राप्त न किए हो । चौराशी लाख जीव को पेदा होने की जगह है, उसमें वैसी एक भी योनि नहीं है कि हे गौतम! जिसमें अनन्ती बार सर्व जीव पेदा न हुए हो ।
[८०४-८०६] तपाए हुए लालवर्णवाले अग्नि समान सूई पास-पास शरीर में लगाई जाए और जो दर्द हो उससे ज्यादा गर्भ में आँठ गुना दर्द होता है । गर्भ में से जब जन्म हो और बाहर नीकले तब योनियंत्र में पिले जाने से जो दर्द हो (उससे) करोड़ या क्रोड़ाक्रोड़ गुना दर्द हो जब पेदा हो रहा हो और मौत के समय का जो दुःख उस समय तो उसके दुःखानुभव में अपनी जात भी भूल जाता है ।
[८०७-८१०] हे गौतम! अलग-अलग तरह की योनि में परिभ्रमण करने से यदि उस दुःखविपाक का स्मरण किया जाए तो जी नहीं शकते । अरे, जन्म, जरा, मरण, दुर्भाग्य, व्याधि की बात एक ओर रख दे । लेकिन कौन महामतिवाला गर्भावास से लज्जा न पाए और प्रतिबोधित न हो । काफी रुधिर परु से गंदकीवाले, अशुचि बदबूवाले, मल से पूर्ण, देखने में भी अच्छा न लगे ऐसे दुरभिगंधवाले गर्भ में कौन धृति पा शके ? तो जिसमें एकान्त दुःख बिखर जाना है एकान्त सुख प्राप्त होना है वैसी आज्ञा का भंग न करना । आज्ञा भंग करनेवाले को सुख कहाँ से मिले ?
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[११] हे भगवंत ! उत्सर्ग से आँठ साधु की कमी में या अपवाद से चार साधु के साथ (साध्वी का गमनागमन निषेध किया है । और उत्सर्ग से दस संयति से कम और अपवाद से चार संयति की कमी में एक सौ हाथ से उपर जाने के लिए भगवंत ने निषेध किया है । तो फिर पाँचवें आरे के अन्तिम समय में अकेले सहाय बिना दुप्पसह अणगार होगे और विष्णु श्री साध्वी भी सहाय बिना अकेली होगी तो वो किस तरह आराधक होंगे ? हे गौतम! दुमकाल के अन्तिम समय वो चार क्षायक सम्यक्त्व ज्ञान - दर्शन चारित्र युक्त होंगे । उसमें जो महाशवाले महानुभावी दुष्पसह अणगार होंगे उनका अति विशुद्ध दर्शन ज्ञानचारित्र आदि गुणयुक्त, जिसने अच्छी तरह से सद्गति का मार्ग देखा है वैसे आशातना भीरु, अति परमश्रद्धा संवेग, वैराग और सम्यग् मार्ग में रहे, बादल रहित निर्मल गगन में शरदपूनम के विमलचंद्र किरन समान उज्ज्वल उत्तमयशवाले, वंदन लायक में भी विशेष वंदनीय, पूज्य में भी परमपूज्य होंगे ।
और वो साध्वी भी सम्यकत्वज्ञानचारित्र के लिए पताका समान, महायशवाले, महासत्त्ववाले, महानुभाग इस तरह के गुणयुक्त होने से अच्छी तरह से जिनके नाम का स्मरण कर शके वैसे विष्णुश्री साध्वी होंगे । और फिर जिनदत्त और फाल्गुश्री नाम के श्रावकश्राविका का होंगे कि कई दिन तक बँयान किया जाए वैसे गुणवाला वो युगल होगा । उन सबकी सोलह साल की अधिक आयु होगी । आँठ साल का चारित्र पर्याय पालन करके फिर पाप की आलोचना करके निःशल्य होकर नमस्कार स्मरण में परायण होकर एक उपवास भक्त भोजन प्रत्याख्यान करके सौधर्मकल्प में उपपात होगा । फिर नीचे मानव लोक में आगमन