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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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६. पृच्छा, ७. प्रतिपृच्छा, ८. छंदना, ९ निमंत्रणा, १० उपसंपदा, यह दश तरह की समाचारी जिस समय करनी हो तब करे वो गच्छ है ।
[७३४] जिसमें छोटे साधु बड़ो का विनय करे, छोटे-बड़े का फर्क मालूम हो । एक दिन भी जो दीक्षा - पर्याय में बड़ा हो । उसकी अवगणना न हो वो गच्छ है ।
[ ७३५] चाहे कैसा भी भयानक अकाल हो, प्राण परित्याग करना पड़े वैसा अवसर प्राप्त हो तो भी सहसात्कारे हे गौतम! साध्वी ने वहोरकर लाई हुई चीज इस्तेमाल न करे उसे गच्छ कहते है ।
[ ७३६] जिसके दाँत गिर गए हो वैसे बुढे स्थविर भी साध्वी साथ बात नहीं करते। स्त्री के अंग या उपांग का निरीक्षण जिसमें नहीं किया जाता वो गच्छ ।
[ ७३७] जिस गच्छ में रूप सन्निधि - उपभोग के लिए स्थापित चीज रखी नहीं जाती, तैयार किए गए भोजनादिक सामने लाकर आहारादि के नाम ग्रहण करे और पूतिकर्म दोषवाले आहार से भयभीत, पातरा बार-बार धोने पड़ेगे ऐसे भय से, दोष लगने के भय से, उपयोगवंत साधु जीसमें हो वो गच्छ है ।
[ ७३८] जिसमें पांच अंग जिसके काम प्रदिप्त करनेवाले है, दुर्जय यौवन खीला है, बड़ा अहंकार है ऐसे कामदेव से पीड़ित मुनि हो तो भी सामने तिलोत्तमा देवांगना आकर खड़ी रहे तो भी उसके सामने नजर नहीं करता वो गच्छ ।
[ ७३९] काफी लब्धिवाले ऐसे शील से भ्रष्ट शिष्य को जिस गच्छ में गुरु महाराज विधि से वचन कहकर शिक्षा करे वो गच्छ ।
[ ७४० - ७४१] नम्र होकर स्थिर स्वभाववाला हँसी और जल्द गति को छोड़कर, विकथा न करनेवाला, अघटित कार्य न करनेवाला, आँठ तरह की गोचरी की गवेषणा करे यानि वहोरने के लिए जाए । जिसमें मुनिओ के अलग-अलग तरह के दुष्कर अभिग्रह, प्रायश्चित् आचरण करते देखकर देवेन्द्र के चित्त चमत्कार पाए वो गच्छ ।
[ ७४२ ] जिस गच्छ में छोटे-बड़े का आपसी वंदनविधि सँभाला जाता हो, प्रतिक्रमण आदि मंडली के विधान को निपुण तरके से जाननेवाले हो । अस्खलित शीलवाले गुरु हो, हमेशा जिसमें उग्र तप करने में तलालीन साधु हो वो गच्छ ।
[ ७४३] जिसमें सुरेन्द्रोपुजीत आँठ कर्म रहित, ऋषभादिक तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा का स्खलन नहीं किया जाता वो गच्छ ।
[ ७४४] हे गौतम ! तीर्थ की स्थापना करनेवाले तीर्थंकर भगवंत और फिर उनका शासन उसे हे गौतम संघ मानना । और संघ में रहे गच्छ, गच्छ में रहे ज्ञान दर्शन और चारित्र तीर्थ है ।
[ ७४५ ] सम्यग्दर्शन बिना ज्ञान नहीं हो शकता । दर्शन-ज्ञान तो सर्वत्र होता है । दर्शन ज्ञान में चारित्र की भजना होती है । यानि चारित्र हो या न भी हो । I
[ ७४६] दर्शन या चारित्ररहित ज्ञानी संसार में घुमता है । लेकिन जो चारित्र युक्त हो वो यकीनन सिद्धि पाता है उसमें संदेह नहीं
[ ७४७ ] ज्ञान पदार्थ को प्रकाशित करके पहचाननेवाला होता है । तप आत्मा को कर्म से शुद्ध करनेवाला होता है । संयम मन, वचन, काया की शुद्ध प्रवृत्ति करवानेवाला होता