Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बीओ उद्देसओ : द्वितीय उद्देशक
मूल और उत्तर कर्मप्रकृतियों के भेद-प्रभेद की प्ररूपणा
१६८७. कति णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ?
गोयमा ! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ। तं जहा - णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं ।
[१६८७ प्र.] भगवन्! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही हैं ?
[१६८७ उ.] गौतम! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, यथा - १६८८. णाणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा - आभिणिबोहियणाणावरणिज्जे जाव केवलणाणावरणिज्जे ।
[१६८८ प्र.] भगवन्! ज्ञानावरणीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
[ १६८८ उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा- आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय यावत् केवलज्ञानावरणीय ।
ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय ।
१६८९. [ १ ] दरिसणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - णिद्दपंचए य दंसणचउक्कए य ।
[१६८९-१ प्र.] भगवन्! दर्शनावरणीयकर्म कितने प्रकार का कहा है ?
[१६८९-१ उ.] गौतम! वह दो प्रकार का कहा है, यथा-निद्रापंचक और दर्शनचतुष्क ।
[ २ ] णिद्दापंचए णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते । तं जहा - णिद्दा जाव थी गिद्धी ।
[१६५९-२ प्र.] भगवन्! निद्रापंचक कितने प्रकार का कहा गया है ?
[ १६८९-२ उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा है, यथा - निद्रा यावत् स्त्यानगृद्धि (स्त्यानर्द्धि) ।
[ ३ ] दंसणचउक्कए णं भंते! ० पुच्छा ।
.. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा - चक्खुदंसणावरणिज्जे जाव केवलदंसणावरणिजे ।
[१६८९-३ प्र.] भगवन्! दर्शनचतुष्क कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१६८९ - ३ उ.] गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा-चक्षुदर्शनावरण यावत् केवलदर्शनावरण।
१६९०. [ १ ] वेयणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - सायावेदणिज्जे य असायावेयणिजे य।
[१६९०-१ प्र.] भगवन् ! वेदनीयकर्म कितने प्रकार का कह गया है ?