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[ प्रज्ञापनासूत्र ]
अल्पकषायवाले सम्मूर्च्छिम मनुष्य, उत्कट कषायवालों से सदा असंख्यातगुणा होते हैं । वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों में सामुद्घातिक अल्पबहुत्व की वक्तव्यता असुरकुमारों के समान समझनी चाहिए।
२१३३. कति णं भंते! कसायसमुग्धाया पण्णत्ता ?
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गोयमा ! चत्तारि कसायसमुग्धाया पण्णत्ता । तं जहा – कोहसमुग्धाए १ माणसमुग्धाए, २ मायासमुग्धाए ३ लोभसमुग्धा ४ ।
[२१३३ प्र.] भगवन्! कषायसमुद्घात कितने कहे हैं ?
[२१३३ उ.] गौतम! कषायसमुद्घात चार कहे हैं, यथा (१) क्रोधसमुद्घात, (२) मानसमुद्घात (३) मायासमुद्घात और (४) लोभसमुद्घात ।
२१३४. [ १ ] णेरइयाणं भंते! कति कसायसमुग्घाया पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि कसायसमुग्धाया पण्णत्ता ?
[२१३४-१ प्र.] भगवन्! नारकों के कितने कषायसमुद्घात कहे हैं ?
[२१३४ उ.] गौतम! उनमें चारों कषायसमुद्घात कहे हैं ।
[२] एवं जाव वेमाणियाणं ।
[२१३४-२] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) वैमानिकों तक (प्रत्येक दण्डक में चार-चार कषायसमुद्घात कहे गये हैं) ।
२१३५. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स केवइया कोहसमुग्धाया अतीता ?
गोयमा ! अनंता ।
केवतिया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ।
[२१३५-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के कितने क्रोधसमुद्घात अतीत हुए हैं ?
[२१३५-२ उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं।
[प्र.] भगवन्! (उसके) भावी (क्रोधसमुद्घात) कितने होते हैं ?
[उ.] गौतम ! ( भावी क्रोधसमुद्घात) किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते हैं। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं ।
[२] एवं जाव वेमाणियस्स ।
१. (क) वही, भा. ५, पृ. १९२७ - १९२८
(ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. ७, पृ. ४४७