Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र] २१४०. [१] णेरइयाणं भंते! णेरइयत्ते केवतिया कोहसमुग्घाया अतीया? गोयमा! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा। गोयमा! अणंता। . [२१४०-१ प्र.] भगवन् ! नारकों के नारकपर्याय में कितने क्रोधसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [२१४०-१ उ.] गौतम! वे अनन्त हुए हैं । [प्र.] भगवन् ! भावी (क्रोधसमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम! वे अनन्त होते हैं। [२] एवं जाव वेमाणियत्ते। [२१४०-२] इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक कहना चाहिए ।
२१४१. एवं सट्ठाण-परट्ठाणेसु सव्वत्थ वि भाणियव्वा सव्वजीवाणं चत्तारि समुग्घाया जाव लोभसमुग्घातो जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते। ___ [२१४१] इसी प्रकार स्वस्थान-परस्थानों में सर्वत्र (क्रोधसमुद्घात से लेकर) लोभसमुद्घात तक यावत् वैमानिकों के वैमानिकपर्याय में रहते हुए सभी जीवों के चारों समुद्घात कहने चाहिए ।
२१४२. एतेसि णं भंते ! जीवाणं कोहसमुग्घाएणं माणसमुग्घाएणं मायासमुग्घाएणं लोभसमुग्धारण य समोहयाणं अकसायसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ? .
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अकसायसमुग्याएणं समोहया, माणसमुग्याएणं समोहया अणंतगुणा, कोहसमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, मायासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, लोभसमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखेजगुणा।
[२१४२ प्र.] भगवन्! क्रोधसमुद्घात से, मानसमुद्घात से, मायासमुद्घात से और लोभसमुद्घात से तथा अकषायसमुद्घात (अर्थात्-कषायसमुद्घात से भिन्न छह समुद्घातों में से किसी भी समुद्घात) से समवहत और असमवहत जीवों से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[२१४२ उ.] गौतम! सबसे कम अकषायसमुद्घात से समवहत जीव हैं, (उनसे) मानकषाय से समवहत जीव अनन्तगुणे हैं, (उनसे) क्रोधसमुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं, (उनसे) मायासमुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं. (उनसे) लोभसमदघात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं और (इन सबसे) असमवहत जीव संख्यातगुणा हैं।
२१४३. एतेसि णं भंते ! णेरइयाणं कोहसमुग्घाएणं माणसमुग्घाएणं मायासमुग्घाएणं लोभसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४?
गोयमा! सव्वत्थोवा णेरड्या लोभसमुग्घाएणं समोहया, मायासमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा,