Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[छत्तीसवाँ समुद्घातपद]
[२८५
केवलिसमुद्घात के पश्चात् योगनिरोध आदि की प्रक्रिया
२१७१. कतिसमइए णं भंते! आउज्जीकरणे पण्णत्ते? । गोयमा! असंखेजसमइए अंतोमुहुत्तिए आउजीकरणे पण्णत्ते। [२१७१ प्र.] भगवन् ! आवर्जीकरण कितने समय का कहा गया है? [२१७१ उ.] गौतम! आवर्जीकरण असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है। २१७२. कतिसमइए णं भंते! केवलिसमुग्घाए पण्णत्ते ?
गोयमा! अट्ठसमइए पण्णत्ते। तं जहा-पढमे समए दंडं करेति, बिइए समए कवाडं करेति, ततिए समए मंथं करेति, चउत्थे समए लोगं पूरेइ, पंचमे समये लोयं पडिसाहरति, छठे समए मंथं पडिसाहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरति, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति, दंडं पडिसाहरित्ता ततो पच्छा सरीरत्थे भवति।
[२१७२ प्र.] भगवन् ! केवलिसमुद्घात कितने समय का कहा गया है ?
[२१७२ उ.] गौतम! वह आठ समय का कहा गया है, वह इस प्रकार है-प्रथम समय में दण्ड (की रचना) करता है, द्वितीय समय में कपाट करता है, तृतीय समय में मन्थान करता है, चौथे समय में लोक को व्याप्त करता है, पंचम समय में लोक-पूरण को सिकोडता है, छठे समय में मन्थान को सिकोडता है, सातवें समय में कपाट को सिकोडता है और आठवें समय मे दण्ड को सिकोडता है और दण्ड का संकोच करते ही (पूर्ववत्) शरीरस्थ हो जाता है।
२१७३. [१] से णं भंते! तहासमुग्धायगते कि मणजोगं जुंजइ वइजोगं जुंजइ कायजोगं जुंजइ ? गोयमा! णो मणजोगं जुंजइ णो वइजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ।
[२१७३-१ प्र.] भगवन् ! तथारूप से समुद्घात प्राप्त केवली क्या मनोयोग का प्रयोग करता है, वचनयोग का प्रयोग करता है, अथवा काययोग का प्रयोग करता है ? ___ [२१७३-१ उ.] गौतम! वह मनोयोग का प्रयोग नहीं करता, वचनयोग का प्रयोग नहीं करता, किन्तु काययोग का प्रयोग करता है।
[२] कायजोगणं भंते! जुंजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ ओरालियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? किं वेउब्वियसरीरकायजोगं जुंजइ ? वेउब्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ आहारगमीसासरीरकायजोगं जुंजइ ? किं कम्मगसरीरकायजोगं जुंजइ ? ___ गोयमा! ओरालियसरीरकायजोगं पि जंजड़ ओरालियमीसासरीरकायजोगं पि जुजइ, णो वेउब्वियसरीरकायजोगं जुंजइ णो वेउव्वियमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, णो आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ णो