Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र] कर्म है और सिद्धों के कर्मों का समूलनाश हो जाता है। कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति नहीं होती, कर्मबीज के कारण रागद्वेष हैं। सिद्धों के रागद्वेष आदि समस्त विकारों का सर्वथा अभाव हो जाने से पुनः कर्म का बन्ध भी सम्भव नहीं है। रागादि ही आयु आदि कर्मों के कारण हैं उनका तो पहले ही क्षय किया जा चुका है। रागादि की पुनः उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि निमित्तकारण का अभाव है। रागादि की उत्पत्ति में उपादान कारण स्वयं आत्मा है। उसके विद्यमान होने पर भी सहकारी कारण वेदनीय-कर्म आदि विद्यमान न होने से कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि दोनों कारणों से उत्पन्न होने वाला कार्य किसी एक कारण से नहीं हो सकता। ..
सिद्धों में रागादि वेदनीयकर्मों का अभाव होता है, क्योंकि वे उन्हें शुक्लध्यानरूपी अग्नि से पहले ही भस्म कर चुकते हैं और उनके कारण संक्लेश भी सिद्धों में संभव नहीं है। रागादि वेदनीयकर्मों का अभाव होने से पुनः रागादि की उत्पत्ति की संभावना नहीं है। कर्मबन्ध के अभाव में पुनर्जन्म न होने के कारण सिद्ध सदैव सिद्धदशा में रहते हैं, क्योंकि रागादि का अभाव हो जाने से आयु आदि कर्मों की पुन: उत्पत्ति नहीं होती, इस कारण सिद्धों का पुनर्जन्म नही होता।
अन्तिम मंगलाचरण-शिष्टाचारपरम्परानुसार ग्रन्थ के प्रारम्भ, मध्य और अन्त में मंगलाचरण करना चाहिए। अतएव यहाँ ग्रन्थ की समाप्ति पर परम मंगल सिद्ध भगवान् का स्वरूप बताया गया है, तथा शिष्य-प्रशिष्यादि की शिक्षा के लिए भी कहा गया है
___ "णिच्छिण्ण-सव्वदुक्खा...सुही सुहं पत्ता।' ॥ प्रज्ञापना भगवती का छत्तीसवां समुद्घातपद समाप्त ॥
॥प्रज्ञापना सूत्र समाप्त ॥
१. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भाग ५, पृ. ११५७ २. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भाग ५, पृ. ११५९-६०