Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 275
________________ २६०] [प्रज्ञापनासूत्र] ही होती है। मरने वालों में भी मारणान्तिकसमुद्घात वाले नारक अत्यल्प ही होते हैं, सब नहीं होते। अत: मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत जीव सबसे कम होते हैं। उनसे वैक्रियसमुद्घात से समवहत नारक असंख्यातगुणा अधिक हैं, क्योंकि रत्नप्रभा आदि सातों नरकपृथ्वियों में से प्रत्येक में बहुत-से नारक परस्पर वेदना उत्पन्न करने के लिए निरन्तर उत्तरवैक्रिय करते रहते हैं । वैक्रियसमुद्घात समवहत नारकों की अपेक्षा कषायसमुद्घात वाले नारक असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि वे परस्पर क्रोधादि से सदैव ग्रस्त रहते हैं। कषायसमुद्घात से समवहत नारकों की अपेक्षा वेदनासमुद्घात से समवहत नारक संख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि यथासम्भव क्षेत्रजन्य वेदना, परमाधार्मिकों द्वारा उत्पन्न की हुई और परस्पर उत्पन्न की हुई वेदना के कारण प्रायः बहुत-से नारक सदा वेदनासमुद्घात से समवहत रहते हैं। इनकी अपेक्षा भी असमवहत नारक संख्यातगणा अधिक हैं, क्योंकि बहत-से नारक वेदनासमदघात के बिना भी वेदना का वेदन करते हैं। इस अपेक्षा से असमवहत नारक सर्वाधिक हैं।' असुरकुमारादि भवनवासियों में समुद्घात की अपेक्षा अल्पबहुत्व- सबसे कम तैजससमुद्घात वाले हैं, क्योंकि अत्यन्त तीव्र क्रोध उत्पन्न होने पर ही कदाचित कोई असुरकुमार तैजससमुद्घात करते हैं। उनकी अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात वाले असुरकुमारादि असंख्यातगुणा अधिक हैं, क्योंकि मारणान्तिकसमुद्घात मरणकाल में होता है। उनकी अपेक्षा वेदनासमुद्घातसमवहत असुरकुमारादि असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि पारस्परिक संग्राम आदि किसी न किसी कारण से बहुत-से असुरकुमार वेदनासमुद्घात करते हैं। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात और वैक्रियसमुद्घात से समवहत असुरकुमारादि क्रमश: उत्तरोत्तर संख्यातगुणा अधिक होते हैं। उनसे भी असमवहत असुरकुमारादि असंख्यातगुणा हैं। असुरकुमारों के समान ही नागकुमार आदि स्तनितकुमार पर्यन्त भवनवासी देवों का कथन समझना चाहिए। ___ पृथ्वीकायिकादि चार एकेन्द्रियों का समुद्घात की अपेक्षा अल्पबहुत्व - सबसे कम मारणान्तिक समद्घात-समवहत पृथ्वी-कायादि (वायुकाय को छोड़कर) चार हैं, क्योंकि यह समद्घात मरण के समय ही होता है और वह भी किसी को होता है किसी को नहीं। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक पूर्वोक्त युक्तिवश पूर्ववत् ही समझ लेना चाहिए। उनकी अपेक्षा वेदनासमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं और उनकी अपेक्षा असमवहत पृथ्वीकायिकादि असंख्यातगुणा अधिक हैं। वायुकायिकों में समुद्घात की अपेक्षा अल्पबहुत्व - सबसे कम वैक्रियसमुद्घात से समवहत वायुकायिक हैं । क्योंकि वैक्रियलब्धि वाले वायुकायिक अत्यल्प ही होते हैं । उनसे मारणान्तिकसमुद्घात-समवहत वायुकायिक असंख्यात गुणा हैं, क्योंकि मारणान्तिकसमुद्घात पर्याप्त, अपर्याप्त, बादर एवं सूक्ष्म सभी वायुकायिकों में हो सकता हैं। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात से समवहत वायुकायिक असंख्यातगुणा होते हैं, उनसे वेदनासमुद्घात-समवहत १. (क) वही, मलयवृत्ति अ.रा.कोष भा. ७, पृ. ४४६ (ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. १०१७ से १०१९ तक २. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अ.रा.कोष भा. ७, पृ. ४४६

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