Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] में एकरूपता का अभाव। लोभ - ममता के परिणाम । इसी कषायचतुष्टय के तीव्रतम, तीव्रतर, तीव्र और मन्द स्थिति के कारण चार-चार प्रकार हो सकते हैं । वे क्रमशः अनन्तानुबन्धी (तीव्रतमस्थिति), अप्रत्याख्यानावरण (तीव्रतरस्थिति), प्रत्याख्यानावरण (तीव्रस्थिति) तथा संज्वलन (मंदास्थिति) हैं। इनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं -
अनन्तानुबन्धी- जो जीव के सम्यक्त्व आदि गुणों को घात करके अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण कराए, उसे अनन्तानुबन्धी कषाय कहते हैं।
अप्रत्याख्यानावरण- जो कषाय आत्मा के देशविरति चारित्र (श्रावकपन) का घात करे अर्थात् जिसके उदय से देशविरति-आंशिकत्यागरूप प्रत्याख्यान न हो सके, उसे अप्रत्याख्यानावरण कहते हैं। .. प्रत्याख्यानावरण- जिस कषाय के प्रभाव से आत्मा को सर्वविरति चारित्र प्राप्त करने में बाधा हो, अर्थात् श्रमणधर्म की प्राप्ति न हो, उसे प्रत्याख्यानावरण कहते हैं।
संज्वलन- जिस कषाय के उदय से आत्मा को यथाख्यातचारित्र की प्राप्ति न हो, अर्थात् जो कषाय परीषह और उपसर्गों के द्वारा श्रमणधर्म के पालन करने को प्रभावित करे वह संज्वलन कषाय है।
इन चारों के साथ क्रोधादि चार कषायों को जोड़ने से कषायमोहनीय के १६ भेद हो जाते हैं।
अनन्तानुबन्धी क्रोध - पर्वत के फटने से हुई दरार के समान जो क्रोध उपाय करने पर भी शान्त न हो। अप्रत्याख्यानावरण क्रोध- सूखी मिट्टी में आई हुई दरार जैसे पानी के संयोग से फिर भर जाती है, वैसे ही जो क्रोध कुछ परिश्रम और उपाय से शान्त हो जाता हो। प्रत्याख्यानावरण क्रोध - धूल (रेत) पर खींची हुई रेखा जैसे हवा चलने पर कुछ समय में भर जाती है, वैसे ही जो क्रोध कुछ उपाय से शान्त हो जाता है। संज्वलन क्रोध- पानी पर खींची हुई लकीर के समान जो क्रोध तत्काल शान्त हो जाता है।
अनन्तानुबन्धी मान- जैसे कठिन परिश्रम से भी पत्थर के खंभे को नमाना असंभव है, वैसे ही जो मान कदापि दूर नहीं होता। अप्रत्याख्यानावरण मान – हड्डी को नमाने के लिए कठोर श्रम के सिवाय उपाय भी करना पड़ता है, वैसे ही जो मान अतिपरिश्रम और उपाय से दूर होता है। प्रत्याख्यानावरण मान - सूखा काष्ठ तेल आदि की मालिश से नरम हो जाता है, वैसे ही जो मान कुछ परिश्रम और उपाय से दूर होता हो। संज्वलन मान- बिना परिश्रम के नमाये जाने वाले बेंत के समान जो मान क्षणभर में अपने आग्रह को छोड़ कर नम जाता है।
अनन्तानुबन्धी माया - बाँस की जड़ में रहने वाली वक्रता-टेढापन का सीधा होना असम्भव होता इसी प्रकार जो माया छूटनी असंभव होती है। अप्रत्याख्यानावरण माया - मेंढे के सींग की वक्रता कठोर परिश्रम व अनेक उपायों से दूर होती है, वैसे ही जो माया-परिणाम अत्यन्त परिश्रम व उपाय से दूर हो। प्रत्याख्यानावरण माया - चलते हुए बैल की मूत्ररेखा की वक्रता के समान जो माया कुटिल परिणाम वाली होने पर कुछ कठिनाई से दूर होती है। संज्वलन माया - बांस के छिलके का टेढापन जैसे बिना श्रम के सीधा हो जाता है, वैसे ही जो मायाभाव आसानी से दूर हो जाता है।
अनन्तानुबन्धी लोभ- जैसे किरमिची रंग किसी भी उपाय से नहीं छूटता, वैसे ही जिस लोभ के परिणाम उपाय करने पर भी न छूटते हों। अप्रत्याख्यानावरण लोभ - गाड़ी के पहिये की कीचड़ के समान अतिकठिनता