Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र]
[८५ गोयमा! सव्वे वि ताव होजा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगाा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य २।
[१७६४ प्र.] भगवन् ! बहुत जीव वेदनीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म प्रकृतियाँ बांधते हैं ?
[१७६४ उ.] गौतम! सभी जीव सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, एकप्रकृतिबन्धक और एक जीव छहप्रकृतिबन्धक होता है १. अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, एकविधबन्धक या छहविधबन्धक होते हैं ।
१७६५. [१] अवसेसा णारगादीया जाव वेमाणिया जाओ णाणावरणं बंधमाणा बंधंति ताहिं भाणियव्वा।
[१७६५-१] शेष नारकादि से वैमानिक पर्यन्त ज्ञानावरणीय को बांधते हुए जितनी प्रकृतियों को बांधते हैं, उतनी का बन्ध यहाँ भी कहना चाहिए।
[२] णवरं मणूसा णं भंते! वेदणिजं कम्मं बंधमाणा कति कम्मपगडीओ बंधंति ?
मोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधए २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ५ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबधंगा य छव्विहबंधए य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधगा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधए य८ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अदविहबंधगाय छव्विहबंधगा य ९. एवं णव भंगा।
[१७६५-२] विशेष यह है कि भगवन्! मनुष्य वेदनीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधते हैं ?
गौतम! सभी मनुष्य सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं १, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक और एक अष्टविधबन्धक होता है २, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक और बहुत अष्टविधबन्धक होते हैं ३, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक और एक षड्विधबन्धक होता है ४, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, बहुत षड्विधबन्धक होते हैं ५, अथवा बहुत । सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, एक अष्टविधबन्धक, और एक षड्विधबन्धक होता है ६, अथवा बहुत ससविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, एक अष्टविधबन्धक, और बहुत षड्विधबन्धक होते हैं ७, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, बहुत अष्टविधबन्धक, और एक षड्विधबन्धक होता है ८, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, बहुत एकविधबन्धक, बहुत अष्टविधबन्धक और बहुत षड्विधबन्धक होते हैं। ९ । इस प्रकार नौ भंग होते हैं।