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पंचतीसइमं वेयणापयं
पैंतीसवाँ वेदनापद
पैंतीसवें पद का अर्थाधिकार प्ररूपण
२०५४. सीता १ य दव्व २ सारीर ३ सात ४ तह वेदणा हवति दुक्खा ५ । अब्भूवगमोवक्कमिया ६ णिदा य अणिदा य ७ णायव्वा ॥२२५॥ सातमसातं सव्वे सुहं च दुक्खं अदुक्खमसुहं च। माणसरहियं विगलिंदिया उ से सा दुविहमेव ॥२२६॥
[२०५४ संग्रहणी-गाथार्थ ] - (पैंतीसवें वेदनापद के) सात द्वार (इस प्रकार) समझने चाहिए - (१) शीत, (२), द्रव्य, (३) शरीर, (४) साता, (५) दुःखरूप वेदना, (६) आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी वेदना तथा (७) निदा और अनिदा वेदना ॥२२५ ॥
साता और असाता वेदना सभी जीव (वेदते हैं।) इसी प्रकार सुख, दुःख और अदुःख-असुख वेदना भी (सभी जीव वेदते हैं।) विकलेन्द्रिय मानस वेदना से रहित हैं। शेष सभी जीव दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं। २२६॥
विवेचन - सात द्वारों का स्पष्टीकरण – (१) सर्वप्रथम शीतवेदनाद्वार है, च शब्द से उष्णवेदना और शतोष्णवेदना भी कही जाएगी, (२) द्वितीय द्रव्यद्वार है, जिसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से वेदना का निरूपण है। (३) तृतीय शरीर वेदनाद्वार है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और शरीर मानसिक वेदना का वर्णन है। (४) चतुर्थ सातावेदनाद्वार है, जिसमें साता, असाता और साता-असाता उभयरूप वेदना का वर्णन है, (५) पंचम दुःखवेदनाद्वार है, जिसमें दुःखरूप, सुखरूप और अदुःख-असुखरूप वेदना का प्रतिपादन है, (६) छठा आभ्युपगमिकी और
औपक्रमिकीवेदनाद्वार है, जिसमें इन दोनों वेदनाओं का वर्णन है ओर (७) सप्तम निदा-अनिदावेदनाद्वार है, जिसमें इन दोनों प्रकार की वेदनाओं के सम्बन्ध में प्ररूपणा है। ___कौन-सा जीव किस-किस वेदना से युक्त? – द्वितीय गाथा में बताया है कि सभी जीव साता-असाता एवं साता-असाता वेदना से युक्त हैं। इसी प्रकार सभी जीव सुखरूप, दुःखरूप या अदुःख असुखरूप वेदना वेदते हैं। विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव मानसवेदना से रहित (मनोहीन) वेदना वेदते हैं। शेष जीव दोनों प्रकार की अर्थात् - शारीरिक और मानसिक वेदना वेदते (भोगते) हैं। १. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ८७४-८७५ ___ (ख) पण्णवणासुत्तं भा. १. (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ४२४ २. (क) वही, पृ. २२४ (ख) प्रज्ञापना (प्रमेयबोधिनी टीका), भाग ५, पृ. ८७३-७४