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[पैतीसवाँ वेदनापद]
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एवं वुच्चति पुढविक्काइया णो णिदायं वेयणं वेदेति, अणिदायं वेदणं वेदेति।
[२०८० प्र.] भगवन्! पृच्छा है-पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना वेदते हैं या अनिदावेदना वेदते हैं ? [२०८० उ.] गौतम! वे निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु अनिदावेदना वेदते हैं।
[प्र.] भगवन्! किस कारण से यह कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु अनिदावेदना वेदते हैं?
[उ.] गौतम! सभी पृथ्वीकायिक असंज्ञी और असंज्ञीभूत होते हैं, इसलिए अनिदावेदना वेदते हैं, (निदा नहीं), इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु अनिदावेदना वेदते हैं।
२०८१. एवं जाव चउरिदिया। [२०८१] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त (कहना चाहिए ।) २०८२. पंचेन्द्रियतिरिक्खजोणिया मणूसा वाणमंतरा जहा णेरइया (सू. २०७८ )।
[२०८२] पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य और वाणव्यन्तर देवों का कथन (सू. २०७८ में उक्त) रयिकों के कथन के समान जानना चाहिए।
२०८३. जोइसियाणं पुच्छा। गोयमा! णिदायं पिं वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति जोइसिया णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति?
गोयमा! जोइसिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा -- माइमिच्छद्दिट्ठिउववण्णगा य अभाइसम्मद्दिट्ठिउववण्णगा य, तत्थ णं जे ते माइमिच्छद्दिट्ठिउववण्णगा ते णं अणिदायं वेदणं वेदेति, तत्थ णंजे ते अमाइसम्मद्दिट्ठिउववण्णगा ते णं णिदायं वेदणं वेदेति, से तेणट्टेणं गोयमा! एवं वुच्चति जोतिसिया दुविहं पि वेदणं वेदेति।
[२०८३ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्कदेव निदावेदना वेदते हैं या अनिदावेदना वेदते हैं ? [२०८३ उ.] गौतम ! वे निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी वेदते हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि ज्योतिष्क देव निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी वेदते हैं? . [उ.] गौतम! ज्योतिष्क देव दो प्रकार के कहे है, यथा - मायिमिथ्यादृष्टिउपपन्नक और अमायिसम्यग्दृष्टिउपपन्नक। उनमें से जो मायिमिथ्यादृष्टिउपपन्नक हैं, वे अनिदावेदना वेदते हैं और जो अमायिसम्यग्दृष्टिउपपन्नक हैं, निदावेदना वेदते है। इस कारण से हे गौतम! यह कहा जाता है कि ज्योतिष्क देव दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं।
२०८४. एवं वेमाणिया वि।