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[प्रज्ञापनासूत्र] [२०९९-२] इसी प्रकार (नारकों के समान) वैमानिकों तक का कथन समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों और मनुष्यों की वक्तव्यता में इनसे भिन्नता है, यथा
[प्र.] भगवन्! वनस्पतिकायिक जीवों के कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [उ.] गौतम! (उनके) अनन्त (आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं)। [प्र.] भगवन्! मनुष्यों के कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [उ.] गौतम! (उनके आहारकसमुद्घात) कथंचित् संख्यात और कथंचित् असंख्यात (हुए हैं।) इसी प्रकार उनके भावी आहारकसमुद्घात भी समझ लेने चाहिए। २१००. [१] णेरइयाणं भंते! केवतिया केवलिसमुग्घाया अतीया ? गोयमा! णत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! असंखेजा। [२१००-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने केवलिसमुद्घात अतीत हुए हैं ? . [२१००-१ उ.] गौतम! एक भी नहीं है। [प्र.] भगवन् ! नारकों के कितने केवलिसमुद्घात आगामी हैं ? [उ.] गौतम! वे असंख्यात हैं। [२] एवं जाव वेमाणियाणं। णवरं वणस्सइकाइय-मणूसेसु इमं णाणत्तं। वणस्सइकाइयाणं भंते! केवतिया केवलिसमुग्धाया अतीता ? गोयमा! णत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता। मणूसाणं भंते! केवतिया केवलिसमुग्घाया अतीया ?
गोयमा! सिय अस्थि सिय णत्थि। जदि अस्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं।
केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! सिय संखेजा सिय असंखेजा।
[२१००-२ प्र.] इसी प्रकार वैमानिकों तक समझना चाहिए। विशेष यह है कि वनस्पतिकायिकों और मनुष्यों में (केवलिसमुद्घात के विषय में पूर्वकथन से) भिन्नता है, यथा- .