________________
[छत्तीसवाँ समुद्घातपद]
[२५१ [उ.] गौतम! अनन्त होते हैं । इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक में (भी अतीत और अनागत अनन्त होते हैं।) [२] एवं सव्वजीवाणं भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते।
[२१२१-१] इसी प्रकार सर्व जीवों के (अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात) यावत् वैमानिकों के वैमानिक पर्याय में (कहने चाहिए।) .
२१२२. एवं जाव तेयगसमुग्घाओ। णवरं उवउजिऊण णेयव्वं जस्सऽत्थि वेउव्विय-तेयगा। __ [२१२२] इसी प्रकार तैजसमुद्घात पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष उपयोग लगा कर समझ लेना चाहिए कि जिसके वैक्रिय और तैजसमुद्घात सम्भव हों, (उसी के कहना चाहिए।)
२१२३ [१] णेरइयाणं भंते! णेरइयत्ते केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीया? गोयमा! णत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! नत्थि। . [२१२३-१ प्र.] भगवन्! (बहुत) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए
[२१२३-१ उ.] गौतम! एक भी नहीं हुआ है। [प्र.] भगवन्! (नारकों के) भावी (आहारकसमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम! नहीं होते। [२] एवं जाव वेमाणियत्ते। णवरं मणूसत्ते अतीया असंखेजा, पुरेक्खडा असंखेजा।
[२१२३-२] इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्याय में (अतीत अनागत आहारकसमुद्घात का कथन करना चाहिए।) विशेष यह है कि मनुष्यपर्याय में असंख्यात अतीत और असंख्यात भावी (आहारकसमुद्घात होते हैं।)
[३] एवं जाव वेमाणियाणं। णवरं वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीया अणंता, पुरेक्खडा अणंता। मणूसाणं अतीया सिय संखेज्जा सिय असंखेजा, एवं पुरेक्खडा वि। सेसा सव्वे जहा णेरइया।
[२१२३-१] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक (कहना चाहिए।) विशेष यह है कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अनन्त अतीत और अनन्त भावी (आहारकसमुद्घात) होते हैं। मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात अतीत (आहारकसमुद्घात) होते हैं। इसी प्रकार भावी (आहारकसमुद्घात भी समझने चाहिए।) शेष सब नारकों के (कथन के) समान (समझना चाहिए)।
[४] एवं एते चउवीसं चउवीसा दंडगा। [२१२३-४] इस प्रकार इन चौबीसों के चौबीस दण्डक होते हैं। २१२४. [१] णेरइयाणं भंते! णेरइयत्ते केवतिया केवलिसमुग्घाया अतीया?