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[प्रज्ञापनासूत्र]
गोयमा! णत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! णत्थि। [२१२४-१ प्र.] भगवन्! नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने केवलिसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [२१२४-१ उ.] गौतम! नहीं हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! कितने भावी (केवलिसमुद्घात) होते हैं ? [उ.] गौतम! वे भी नहीं होते हैं। [२] एवं जाव वेमाणियत्ते। णवरं मणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा असंखेजा।
[२१२४-२] इसी प्रकार वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष यह है कि मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात) नहीं होते, किन्तु भावी असंख्यात होते हैं।
[३] एवं जाव वेमाणिया। णवरं वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीया णत्थि, पुरेक्खडा अणंता। पणूसाणं मणूसत्ते अतीया सिय अत्थि सिय णत्थि। जदि अत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं।
केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! सिय संखेजा सिय असंखेजा।
[२१२४-३] इसी प्रकार वैमानिकों तक (समझना चाहिए।) विशेष यह है कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अतीत (केवलिसमुद्घात) नहीं होते। भावी अनन्त होते हैं। मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में अतीत (केवलिसमुद्घात) कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य, एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शत-पृथक्त्व होते
[प्र.] भगवन् ! (मनुष्यों के) भावी (केवलिसमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! वे कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं। [४] एवं एते चउवीसं चउवीसा दंडगा सव्वे पुच्छाए भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते।
[२१२४-४] इस प्रकार इन चौबीस दण्डकों में चौबीस दण्डक घटित करके पृच्छा के अनुसार वैमानिकों के वैमानिकपर्याय में, यहाँ तक कहने चाहिए।
विवेचन-बहुत्व की अपेक्षा से अतीत-अनागत वेदनादिसमुद्घात निरूपण-इससे पूर्व एक-एक नैरयिक आदि के नैरयिकादि पर्याय में अतीत-अनागत वेदनादि समुद्घातों का निरूपण किया गया था। अब बहुत्व की अपेक्षा से नारकादि के उस-उस पर्याय में रहते हुए अतीत-अनागत वेदनादि समुद्घातों का निरूपण किया गया
है।