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[प्रज्ञापनासूत्र] वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहने चाहिए।
[२] एवमेते चउव्वीसं चउव्वीसा दंडगा भवंति। [२१०४-२.] इसी प्रकार चौबीस दण्डकों में से प्रत्येक के चौबीस दण्डक होते हैं। २१०५. एगमेस्स णं भंते! णंरइयस्स जेरइयत्ते केवतिया कसायसमुग्घाया अतीया? गोयमा! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि एगुत्तरियाए जाव अणंता। [२१०५ प्र.] भगवन्! एक-एक नारक के नारकपर्याय (नारकत्व) में कितने कषायसमुद्घात अतीत हुए
[२१०५-उ.] गौतम! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन्! भावी कषायसमुद्घात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके एक से लेकर यावत् अनन्त
हैं।
२१०६. एगमेस्स णं भंते! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया कसायसमुग्घाया अतीया? गोयमा! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि सिय संखेजा सिय असंखेजा सिय अणंता। [२१०६ प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के असुरकुमारपर्याय में कितने कषायसमुद्घात अतीत होते हैं ? [२१०६-उ.] गौतम! अनन्त होते हैं। [प्र.] भगवन् ! (उसके) भावी (कषायसमुद्घात) कितने होते हैं ?
[उ.] गौतम! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं।
२१०७. एवं जाव णेरइयस्स थणियकुमारत्ते। पुढविकाइयत्ते एगुत्तरियाए णेयव्वं, एवं जाव मणूसत्ते। वाणमंतरत्ते जहा असुरकुमारत्ते (सु. २१०६)। जोतिसियत्ते अतीया अणंता, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि। जस्सऽस्थि सिय असंखेज्जा सिय अणंता। एवं वेमाणियत्ते वि सिय असंखेजा सिय अणंता।
[२१०७] इसी प्रकार नारक का यावत् स्तनितकुमारपर्याय में (अतीत-अनागत कषायसमुद्घात समझना चाहिए। नारक का पृथ्वीकायिकपर्याय में एक से लेकर जानना चाहिए। इसी प्रकार यावत् मनुष्यपर्याय में समझना