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[छत्तीसवाँ समुद्घातपद]
[२४५ हुए वेदनासमुद्घातों की गणना विवक्षित है। वर्तमान में जो नारकजीव है, उसने नारकेतरपर्याय में जो वेदनासमुद्घात किये, वे यहाँ विवक्षित नहीं। इसी प्रकार परस्थानों में भी एक-एक पर्याय ही विवक्षित है। यथा-नारक ने असुरकुमार अवस्था में जो वेदनासमुद्घात किये, उन्हीं की गणना की जाएगी, अन्य अवस्थाओं में किये हुए वेदनासमुद्घात विवक्षित नहीं होगें। इस प्रकरण में सर्वत्र यह विशेषता ध्यान में रखनी चाहिए।
(१) वेदनासमुद्घात - नारकपर्याय में रहे हुए एक नारक के अनन्त वेदनासमुद्घात हुए हैं, क्योंकि उसने अनन्त वार नारकपर्याय प्राप्त की है और एक-एक नारकभव में भी कम से कम संख्यात वेदनासमुद्घात होते हैं। साथ ही किसी एक नारक के मोक्षपर्यन्त अनागतकाल की अपेक्षा से नारकपर्याय में भावी वेदनासमुद्घात होते हैं, किसी के नहीं होते। जिस नारक की मृत्यु निकट है, वह कदाचित् वेदनासमुद्घात किये बिना ही, मारणान्तिकसमुद्घात के द्वारा नरक से उद्वर्तन करके मनुष्यभव पाकर मुक्त हो जाता है, उस नारक को नारकपर्याय सम्बन्धी भावी वेदनासमुद्घात नहीं होता। जिस नारक के नरकपर्यायसम्बन्धी भावी समुद्घात है, उसके जघन्य एक, दो या तीन
और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं। जैसे नारकों के नारकपर्यायसम्बन्धी वेदनासमुद्घातों का निरूपण किया गया, उसी प्रकार नारक के असुरकुमारपर्यायों में स्तनितकुमार पर्यन्त भवनवासीदेवपर्याय में, पथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रियपर्याय में, विकलेन्द्रियपर्याय में, मनष्यपर्याय में, वाणव्यन्तर. ज्योतिष्क और वैमानिकपर्याय में भी सम्पूर्ण अतीतकाल की अपेक्षा अनन्त वेदनासमुद्घात अतीत होते हैं । भावी वेदनासमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं। इनमें से जिनकी शेष आयु क्षीण हो गई है और जो उसी भव में मोक्ष जाने वाले हैं, उनकी अपेक्षा से एक, दो या तीन भावी वेदनासमुद्घात कहे गए हैं। जो जीव पुनः नरक में उत्पन्न होनेवाला होता है, उसके जघन्यरूप से भी संख्यात भावी वेदनासमुद्घात होते हैं । ये संख्यात समुद्घात भी उसी नारक के समझने चाहिए, जो एक ही वार और वह भी जघन्प्य स्थिति वाले नरक में उत्पन्न होने वाला हो। जो अनेक वार और दीर्घस्थितिकरूप में उत्पन्न होने वाला हो, उसके भावी वेदनासमुद्घात असंख्यात होते हैं, जो अनन्तवार उत्पन्न होने वाला हो उसके अनन्त होते हैं। __एक-एक असुरकुमार के नैरयिक अवस्था में अनन्त वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं, क्योंकि उसने अतीतकाल में अनन्तवार नारक अवस्था प्राप्त की है और एक-एक नारकभव में संख्यात वेदनसमुद्घात होते हैं। एक-एक असुरकुमार के नारक अवस्था में भावी वेदनासमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते हैं। जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त वेदनासमुद्घात होते हैं। जो असुरकुमार के भव से निकल कर नारकभव मे कभी जन्म नहीं लेगा, किन्तु अनन्तर भव में या फिर परम्परा से मनुष्यभव प्राप्त करके सिद्ध हो जाएगा, उसके नारक पर्यायभावी आगामी वेदनासमुद्घात नहीं होते, क्योंकि उसके नारकपर्याय ही प्राप्त होने वाला नहीं है। जो असुरकुमार उस भव के पश्चात् परम्परा से नरक में जाएगा, उसके भावी वेदनासमुद्घात होते हैं तथा उनमें से जो एक बार जघन्य स्थिति वाले नारक में उत्पन्न होगा, उस असुरकुमार के जघन्य भी संख्यात वेदनासमुद्घात होते हैं। क्योंकि नरक में वेदना की बहुलता होती है। कई बार जघन्यस्थिति वाले नरक में जाने वर असंख्यात वेदनासमुद्घात होंगे और अनन्तवार नरक में जाए तो अनन्त वेदनासमुद्घात होंगे।