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[ छत्तीसवाँ समुद्घातपद ]
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[२११८ - १] तैजससमुद्घात का कथन (सू. २११६ में उक्त) मारणान्तिकसमुद्घात के समान कहना चाहिए। विशेष यह है कि जिसके वह होता है, ( उसी के कहना चाहिए ) ।
[२] एवं एते वि चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा ।
[२११८-२] इस प्रकार ये भी चौबीसों दण्डकों में घटित करना चाहिए।
२११९. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया आहारगसमुग्धाया अतीया ?
गोयमा ! णत्थि ।
केवतिया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! णत्थि ।
[२११९-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के नारक अवस्था में कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [२११९-१] गौतम! (नारक के नारकपर्याय में अतीत आहारकसमुद्घात) नहीं होते हैं।
[प्र.] भगवान् ! उसके भावी आहारकसमुद्घात कितने होते हैं ?
[.उ.] गौतम! (भावी आहारकसमुद्घात भी) नहीं होते ।
[ २ ] एवं जाव वेमाणियत्ते । णवरं मणूसत्ते अतीया कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा, उक्कोसेणं तिण्णि ।
केवतिया पुरेक्खडा ?
गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि जहण्णेणं एक्की वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि ।
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[२११९-२] इसी प्रकार (मारक के ) यावत् वैमानिक अवस्था में (अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात का कथन समझना चाहिए) । विशेष यह है कि ( नारक के) मनुष्यपर्याय में अतीत (आहारकसमुद्घात) किसी के होता है, किसी के नहीं होता। जिसके होता है, उसके जघन्य एक अथवा दो और उत्कृष्ट तीन होते हैं।
[प्र.] भगवन्! (नारक के मनुष्यपर्याय में) भावी (आहारकसमुद्घात) कितने होते हैं ?
[उ.] गौतम ! किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं।
[ ३ ] एवं सव्वजीवाणं मणूसेसु भाणियव्वं ।
[२११९-३] इसी प्रकार समस्त जीवों और मनुष्यों के ( अतीत और भावी आहरकसमुद्घात के विषय में जानना चाहिए।)
[४] मणूसस्स मणूसत्ते अतीया कस्सइ अत्थि, कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि । एवं पुरेक्खडा वि ।