Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
[छत्तीसवाँ समुद्घातपद]
[२३७ [प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिकों के कितने केवलिसमुद्घात अतीत हैं ? [उ.] गौतम! (इनके केवलिसमुद्घात अतीत) नहीं हैं। [प्र.] भगवन् ! इनके कितने भावी केवलिसमुद्घात हैं ? [उ.] गौतम! वे अनन्त हैं।
[प्र.] भगवन् ! मनुष्यों के कितने केवलिसमुद्घात अतीत हैं ? ___ [उ.] गौतम! कथञ्चित् हैं और कथञ्चित् नहीं हैं। यदि हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व हैं।
[प्र.] भगवन् ! उनके भावी केवलिसमुद्घात कितने कहे हैं? [उ.] गौतम! कथञ्चित् संख्यात हैं और कथञ्चित् असंख्यात हैं।
विवेचन - नारकादि में बहुत्व की अपेक्षा से वेदनासमुद्घात आदि का निरूपण- नारकों के वेदनासमुद्घात अनन्त अतीत हुए हैं, क्योंकि बहुत-से नारकों को व्यवहारराशि से निकले अनन्तकाल हो चुका है। इनके भावी समुद्घात भी अनन्त हैं, क्योंकि बहुत से नारक अनन्तकाल तक संसार में स्थित रहेंगे। ___ असुरकुमारादि भवनवासियों, पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों, तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों के भी वेदनासमुद्घात अतीत और अनागत (भावी) में अनन्त होते हैं।
वेदनासमुद्घात की भांति कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय और तैजस समुद्घात की वक्तव्यता भी समझ लेनी चाहिए।'
इन सबका निरूपण चौबीस दण्डकों में बहुवचन के रूप में करना चाहिए।
आहारकसमुद्घात-नारकों के अतीत आहारकसमुद्घात असंख्यात हैं। तात्पर्य यह है कि यद्यपि सभी नारक असंख्यात हैं, तथापि उनमें भी कुछ असंख्यात नारक ऐसे होते हैं, जो पहले आहारकसमुद्घात कर चुके हैं, उनकी अपेक्षा से नारकों के अतीत आहारकसमुद्घात असंख्यात कहे हैं। इसी प्रकार नारकों के भावी आहारकसमुद्घात भी पूर्वोक्त युक्ति से असंख्यात समझ लेना चाहिए। __वनस्पतिकायिकों और मनुष्यों को छोड़कर शेष दण्डकों में वैमानिकों पर्यन्त अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात पूर्ववत् असंख्यात हैं।
वनस्पतिकायिकों के अतीत आहारकसमुद्घात-बहुवचन की अपेक्षा से अनन्त हैं, क्योंकि ऐसे वनस्पतिकायिक जीव अनन्त हैं, जिन्होंने चौदह पूर्वो का ज्ञान भूतकाल में किया था, किनतु प्रमाद के वशीभूत होकर संसार की वृद्धि करके वनस्पतिकायिकों में विद्यमान हैं। वनस्पतिकायिकों के भावी आहारकसमुद्घात भी अनन्त हैं, क्योंकि पृच्छा के समय जो जीव वनस्पतिकाय में हैं, उनमें से अनन्त जीव वनस्पतिकायिकों में से निकल कर मनुष्यभव पाकर चौदह पूर्वो का ज्ञान प्राप्त करके आहारकसमुद्घात करके सिद्धिगमन करेंगे।
मनुष्यों के अतीत-अनागत आहारकसमुद्घात- बहुवचन की अपेक्षा से कदाचित् संख्यात और कदाचित्