Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचतीसइमं वेयणापयं पैंतीसवाँ वेदनापद
प्राथमिक
* प्रज्ञापनासूत्र के वेदनापद में संसारी जीवों को अनुभूत होने वाली सात प्रकार की वेदनाओं की चौबीस
दण्डक के माध्यम से प्ररूपणा की गई है। * इस संसार में जब तक जीव छद्मस्थ है, तब तक विविध प्रकार की अनुभूतियाँ होती रहती हैं। इन
अनुभूतियों का मुख्य केन्द्र मन है। मन पर विविध प्रकार की वेदनाएँ अंकित होती रहती हैं। वह जिस रूप में जिस वेदना को ग्रहण करता है, उसी रूप में उसकी प्रतिध्वनि अनुभूति के रूप में व्यक्त होती है। यही कारण है कि शास्त्रकार ने इस पद में विविध निमित्तों से मन पर अंकित होने वाली विविध वेदनाओं का
दिग्दर्शन कराया हैं। * · वेदना के विभिन्न अर्थ मिलते हैं । यथा - ज्ञान, सुख-दुःखादि का अनुभव, पीड़ा, दुःख, संताप, रोगादिजनित
वेदना, कर्मफल-भोग, साता-आसातारूप अनुभव, उदयावलिकाप्रविष्ट कर्म का अनुभव आदि। * इन सभी अर्थों के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत पद में वेदना-सम्बन्धी सात द्वार प्रस्तुत किये गये हैं, जिनमें विविध
वेदनाओं का निरूपण है। वे सात द्वार इस प्रकार हैं – (१) प्रथम शीतवेदनाद्वार है, जिसमें शीत, उष्ण और शीतोष्ण वेदना का निरूपण है, (२) द्वितीय द्रव्यद्वार है, जिसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से होने वाली वेदना का निरूपण है, (३) तृतीय शरीरवेदनाद्वार है, जिसमें शारीरिक, मानसिक और शारीरिक-मानसिक वेदना का वर्णन है, (४) चतुर्थ सातावेदनाद्वार है, जिसमें साता असाता और साता-असाता वेदना का निरूपण है, (५) पंचम दुःखवेदनाद्वार है, इसमें दुःखरूप, सुखरूप तथा दुःख-सुखरूप वेदना का प्रतिपादन है, (६) छठा आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकीवेदनाद्वार है, जिसमें इन दोनों प्रकार की वेदनाओं का निरूपण है तथा
(७) सातवाँ निदा-अनिदावेदनाद्वार है, जिसमें इन दोनों प्रकार की वेदनाओं की प्ररूपणा है।' * इसके पश्चात् यह बताया गया है कि कौनसी वेदना क़िस-किस जीव को होती है और किसको नहीं?
यथा-एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव मानसवेदना से रहित होते हैं। शेष सभी द्वारों में
वेदना का अनुभव सभी संसारी जीवों को होता है। * इन सात द्वारों में से छठे और सातवें द्वार की वेदनाएँ जानने योग्य हैं। जो वेदनाएँ सुखपूर्वक स्वेच्छा से
१. (क) पाइअसद्दमहण्णवो, पृ. ७७३
(ख) अभि. रा. कोष, भा. ६, पृ. १४३८ २. पण्णवणासुत्तं भा. १ (मू. पा. टिप्पण), पृ. ४२४