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[२०६७ उ.] गौतम ! तीनों प्रकार की वेदना वेदते हैं।
२०६८. एवं सव्वजीवा जाव वेमाणिया ।
[२०६८] इसी प्रकार वैमानिकों तक सभी जीवों की वेदना के विषय में ( जानना चाहिए ।)
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विवेचन - सातादि त्रिविध वेदना सुखरूप वेदना को सातावेदना, दुःखरूप वेदना को असातावेदना और सुख-दुःखरूप वेदना को उभयरूप वेदना कहते हैं। नारक से वैमानिक देव पर्यन्त तीनों प्रकार की वेदना वेदते हैं। नारकजीव तीर्थंकर के जन्मदिवस आदि के अवसर पर साता और अन्य समयों में असाता वेदते हैं। पूर्वसांगतिक देव या असुरों के मधुर-मधुर आलापरूपी अमृत की वर्षा होने पर मन में सातावेदना और क्षेत्र के प्रभाव से असुर के कठोर व्यवहार से असातावेदना होती है। इन दोनों की अपेक्षा से साता-असातारूप वेदना होती है। सभी जीवों को त्रिविध वेदना होती है। पृथ्वीकायिक आदि को जब कोई उपद्रव नहीं होता, तब वे सातावेदना का अनुभव करते हैं। उपद्रव होने पर असाता का तथा जब एकदेश से उपद्रव होता है, तब साता - असाता - उभयरूप वेदना का अनुभव होता हैं। देवों को सुखानुभव के समय सातावेदना, च्यवनादि के समय असातावेदना तथा दूसरे देव के वैभव को देखकर मात्सर्य होने से असातावेदना, साथ ही अपनी प्रिय देवी के साथ मधुरालापादि करते समय सातावेदना; यों दोनों प्रकार की वेदना होती हैं।'
पंचम दुःखादि-वेदनाद्वार
सुखा ।
हैं ।
[ प्रज्ञापनासूत्र ]
२०६१. कतिविहाणं भंते! वेयणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता । तं जहा- दुक्खा सुहा अदुक्खसुहा ।
[२०६१ प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ?
[२०६१ उ.] गौतम! वेदना तीन प्रकार की कही गई है, यथा - - (१) सुखा, (२) दुःखा और (३) अदुःख
२०७०. णेरड्या णं भंते! किं दुक्खं वेदणं वेदेंति ० पुच्छा |
गोयमा ! दुक्खं पि वेदणं वेदेंति, सुहं पि वेदणं वेदेंति, अदुक्खसुहं पि वेदणं वेदेंति ।
[२०७० प्र.] भगवन्! नैरयिक जीव दुःखवेदना वेदते हैं, सुखवेदना वेदते हैं अथवा अदुःख-असुखावेदना
वेदते हैं ?
[२०७० उ.] गौतम! वे दुःखवेदना भी वेदते हैं, सुखवेदना भी वेदते हैं और अदुःख - असुखावेदना भी वेदते
२०७१. एवं जाव वेमाणिया ।
[२०७१] इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए ।
१. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. ५, पृ. ८९३-८९४ (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ५५६