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प्रथम : शीतादि-वेदनाद्वार
[ प्रज्ञापनासूत्र ]
२०५५. कतिविहाणं भंते! वेदणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! तिविहा वेदणा पण्णत्ता । तं जहा - सीता १ उसिणा २ सीतोसिणा ३ |
[२०५५ प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ?
[२०५५ उ.] गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही है यथा (१) शीतवेदना, (२) उष्णवेदना और (३) शीतोष्णवेदना ।
२०५६. णेरड्या णं भंते! किं सीतं वेदणं वेदेति, उसिणं वेदणं वेदेंति, सीतोसिणं वेदणं वेदेंति ? गोयमा ! सीयं पि वेदणं वेदेंति उसिणं पि वेदणं वेदेंति, णो सीतोसिणं वेदणं वेदेति । [२०५६ प्र.] भगवन् ! नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं, उष्णवेदना वेदते हैं, या शीतोष्णवेदना वेदते हैं ? [२०५६ उ.] गौतम ! (नैरयिक) शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्णवेदना भी वेदते हैं, शीतोष्णवेदना नहीं
वेदते ।
२०५७. [ १ ] केई एक्केक्कीए पुढवीए वेदणाओ भांति
[२०५७ - १] कोई-कोई प्रत्येक (नरक) पृथ्वी में वेदनाओं के विषय में कहते हैं
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[ २ ] रयणप्पभापुढविणेरड्या णं भंते! ० पुच्छा ।
गोयमा ! णो सीयं वेदणं वेदेंति, उसिणं वेदणं वेदेंति, णो सीतोसिणं वेदणं वेदेंति । एवं जाव वालुयप्पभापुढविणेरड्या |
[२०५७-२ प्र.] भगवन्! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न है ।
[२०५७-२ उ.] गौतम ! वे शीतवेदना नहीं वेदते और न शीतोष्णवेदना वेदते हैं किन्तु उष्णवेदना वेदते हैं। इसी प्रकार वालुकाप्रभा (तृतीय नरकपृथ्वी) के नैरयिकों तक कहना चाहिए।
[ ३ ] पंकप्पभापुढविणेरइयाणं पुच्छा ।
गोयमा! सीयं पिवेदणं वेदेंति, उसिणं पि वेदणं वेदेंति, णो सीओसिणं वेदणं वेदेंति । ते बहुयतरागा जे उसिणं वेदणं वेदेंति, ते थोवतरागा जे सीयं वेदणं वेदेंति ।
[२०५७-३ प्र.] भगवन्! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न है।
[२०५७-३ उ.] गौतम! वे शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्णवेदना भी वेदते हैं, किंतु शीतोष्णवेदना नहीं वेदते । वे नारक बहुत हैं जो उष्णवेदना वेदते हैं और वे नारक अल्प हैं जो शीतवेदना वेदते हैं।
[ ४ ] धूमप्पभाए एवं चेव दुविहा। नवरं ते बहुयतरागा जे सीयं वेदणं वेदेंति, ते थोवतरागा जेउसि
वेदेंति ।
[२०५७-४] धूमप्रभापृथ्वी के (नैरयिकों) में भी दोनों प्रकार की वेदना कहनी चाहिए। विशेष यह है कि