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[प्रज्ञापनासूत्र]
[१२१ शुभानुभवरूप बाहुल्य कारण की अपेक्षा से वर्ण से – पीत और श्वेत, गन्ध से सुरभिगन्ध वाले, रस से - अम्ल और मधुर, स्पर्श से मृदु, लघु स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों के पुरातन वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-गुणों को रूपान्तरित करके अपने शरीरक्षेत्र में अवगाढ़ पुद्गलों का समस्त आत्मप्रदेशों से वैमानिक आहार करते है, उन आहार किये हुए पुद्गलों को वे श्रोत्रेन्द्रियादि पांच इन्द्रियों के रूप में, इष्ट, कान्त, प्रिय, शुभ, मनोज्ञ, मनाम, इष्ट और विशेष अभीष्ट रूप में, हल्के रूप में, भारी रूप में नहीं, सुखदरूप में, दुःखरूप में नहीं, परिणत करते हैं।
विशेष स्पष्टीकरण - जिन वैमानिक देवों की जितने सागरोपम की स्थिति है, उन्हें, उतने ही हजार वर्ष में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है। इस नियम के अनुसार सौधर्म, ईशान आदि देवलोकों में आहारेच्छा की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का परिमाण समझ लेना चाहिए। इसे स्पष्टरूप से समझने के लिए नीचे एक तालिका दी जा रही है, जिससे आसानी से वैमानिक देवों की आहारेच्छा के काल को समझा जा सके। क्रम वैमानिकदेव का नाम जघन्य आहारेच्छाकाल उत्कृष्ट आहारेच्छाकाल सौधर्मकल्प के देव दिवस-पृथक्त्व
दो हजार वर्ष ईशानकल्प के देव कुछ अधिक दिवस-पृथक्त्व कुछ अधिक दो हजार वर्ष सनत्कुमारकल्प के देव दो हजार वर्ष
सात हजार वर्ष माहेन्द्रकल्प के देव कुछ अधिक दो हजार वर्ष कुछ अधिक ७ हजार वर्ष ब्रह्मलोक के देव सात हजार वर्ष
दस हजार वर्ष लान्तककल्प के देव दस हजार वर्ष
चौदह हजार वर्ष महाशुक्रकल्प के देव चौदह हजार वर्ष
सत्तरह हजार वर्ष सहस्रारकल्प के देव सत्तरह हजार वर्ष अठारह हजार वर्ष आनतकल्प के देव अठारह हजार वर्ष
उन्नीस हजार वर्ष, प्राणतकल्प के देव उन्नीस हजार वर्ष बीस हजार वर्ष आरणकल्प के देव बीस हजार वर्ष
इक्कीस हजार वर्ष अच्युतकल्प के देव इक्कीस हजार वर्ष बाईस हजार वर्ष अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक देव बाईस हजार वर्ष
तेईस हजार वर्ष अधस्तन-मध्यम ग्रैवेयक देव तेईस हजार वर्ष
चौवीस हजार वर्ष अधस्तन-उपरिम ग्रैवेयक देव चौवीस हजार वर्ष
पच्चीस हजार वर्ष मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक देव पच्चीस हजार वर्ष
छव्वीस हजार वर्ष मध्यम-मध्यम