Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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एगतीसइमं सण्णिपयं
इकतीसवाँ संक्षिपद जीव एवं चौबीस दण्डकों में संज्ञी आदि की प्ररूपणा
१९६५. जीवा णं भंते! किं सण्णी असण्णी णोसण्णी-णोअसण्णी ? गोयमा ! जीवा सण्णी वि असण्णी वि णोसण्णी-णोअसण्णी वि । [१९६५ प्र.] भगवन् ! जीव संज्ञी हैं, असंज्ञी हैं, अथवा नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी हैं ? [१९६५ उ.] गौतम ! जीव संज्ञी भी हैं, असंज्ञी भी हैं और नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी भी हैं। १९६६. णेरइया णं भंते ! • पुच्छा। गोयमा ! णेरइया सण्णी वि असण्णी वि, णो णोसण्णी-णोअसण्णी । [१९६६ प्र.] भगवन् ! नैरयिक संज्ञी हैं, असंज्ञी हैं अथवा नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी हैं ? [१९६६ उ.] गौतम ! नैरयिक संज्ञी भी हैं, असंज्ञी भी हैं, किन्तु नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी नहीं हैं। १९६७. एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा। इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक (कहना चाहिए) १९६८. पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा ! णो सण्णी, असण्णी, णो णोसण्णी-णोअसण्णी । [१९६८ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव संज्ञी हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न है।
[१९६८ उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव न तो संज्ञी हैं और न नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी हैं, किन्तु असंज्ञी हैं । (इसी प्रकार सभी एकेन्द्रिय जीवों के विषय में समझना चाहिए।)
१९६९. एवं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिया वि।
[१९६९] इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के लिए भी जानना चाहिए (कि वे संज्ञी या नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी नहीं होते, किन्तु असंज्ञी होते हैं)।
१९७०. मणूसा जहा जीवा (सु. १९६५)। [१९७०] मनुष्यों की वक्तव्यता समुच्चय जीवों के समान जानना चाहिए। १९७१. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया वाणमंतरा य जहा णेरइया (सु. १९६६)। [१९७१]पंचेन्द्रियतिर्यचों और वाणव्यन्तरों का कथन (सू. १९६६ में उक्त) नारकों के समान है। १९७२. जोइसिय-वेमाणिया सण्णी, णो असण्णी णो णोसण्णी-णोअसण्णी।