Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र] [१९९१ उ.] गौतम ! वे जघन्य पच्चीस योजन और उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप-समुद्रों (पर्यन्त क्षेत्र) को अवधि (ज्ञान) से जानते-देखते हैं।
१९९२. णागकुमारा णं जहण्णेणं पणुवीसं जोयणाई, उक्कोसेणं संखेजे दीव-समुद्दे ओहिणा जाणंति पासंति।
[१९९२] नागकुमारदेव जघन्य पच्चीस योजन-और उत्कृष्ट संख्यात द्वीप-समुद्रों (पर्यन्त क्षेत्र) को अवधि(ज्ञान) से जानते-देखते हैं।
१९९३. एवं जाव थणियकुमारा।
[१९९३] इसी प्रकार (सुपर्णकुमार से लेकर) स्तनितकुमार पर्यंन्त की (अवधिज्ञान से जानने-देखने की जघन्य उत्कृष्ट सीमा का कथन करना चाहिए।)
१९९४. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? .. गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं असंखेजे दीव-समुद्दे।
[१९९४ प्र.] भगवन्! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीव अवधि (ज्ञान) से कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं। __ [१९९४ उ.] गौतम! वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को और उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप-समुद्रों को जानते-देखते हैं।
१९९५. मणूसा णं भंते! ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति ?
गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं असंखेजाइं अलोए लोयपमाणमेत्ताई खंडाई आहिणा जाणंति पासंति।
[१९९५ प्र.] भगवन्! मनुष्य अवधि (ज्ञान द्वारा कितने क्षेत्र) को जानते-देखते हैं ?
[१९९५ उ.] गौतम! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग क्षेत्र को और उत्कृष्ट अलोक में लोक प्रमाण असंख्यात खण्डों को अवधि (ज्ञान) द्वारा जानते-देखते हैं।
१९९६. वाणमंतरा जहा णागकुमारा (सु. १९९२)।
[१९९६] वाणव्यन्तर देवों की जानने-देखने की क्षेत्र-सीमा (सू. १९९२ में उक्त) नागकुमार देवों के समान जाननी चाहिए।
१९९७. जोइसिया णं भंते! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति। गोयमा! जहण्णेणं संखेने दीव-समुद्दे, उक्कोसेण वि संखिने दीव-समुद्दे। [१९९७ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्कदेव कितने क्षेत्र को अवधि (ज्ञान) द्वारा जानते-देखते हैं ?
[१९९७ उ.] गौतम! वे जघन्य भी संख्यात द्वीप-समुद्रों को तथा उत्कृष्ट भी संख्यात द्वीप-समुद्रों (पर्यंन्तक्षेत्र) को (अवधिज्ञान से जानते-देखते हैं।)