Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[तेतीसवाँ अवधिपद]
[१८७
१४ वाणव्यन्तर
पच्चीस योजन
संख्यात द्वीप-समुद्र १५ ज्योतिष्कदेव
संख्यात द्वीप-समुद्र संख्यात द्वीप-समुद्र १६ सौधर्मदेव
अंगुल के असंख्यातवें भाग नीचे रत्नप्रभापृथ्वी के निचले (उपपात के समय पूर्वभव चरमान्त तक, तिरछे असंख्यात सम्बन्धी सर्व जघन्य अवधि द्वीप-समुद्र तक, ऊपर अपने की अपेक्षा से)
विमानों तक १७ ईशानदेव
सौधर्मवत् १८ सनत्कुमारदेव
नीचे शर्कराप्रभा के निचले चरमान्त
तक, शेप सब सौधर्मवत्। १९ माहेन्द्रदेव
सनत्कुमारवत् २० ब्रह्मलोक और लान्तकदेव
नीचे तीसरी पृथ्वी के निचले
चरमान्त तक, शेष सब सौधर्मवत् २१ महाशुक्र, सहस्त्रारदेव
नीचे चौथी पंकप्रभा के निचले
चरमान्त तक, शेष सौधर्मवत् २२ आनत, प्राणत, आरण, अच्युत
नीचे पंचमी धूमप्रभापृथ्वी के
निचले चरमान्त तक, शेप पूर्ववत् २३ अधस्तन, मध्यम ग्रैवेयकदेव
नीचे छठी तमः प्रभापृथ्वी के निचले
चरमान्त तक, शेष सौधर्मवत् २४ उपरिम ग्रैवेयकदेव
नीचे सातवीं नरक के निचले चरमान्त तक, तिरछे और ऊपर
सौधर्मवत् २५ अनुत्तरोपपातिकदेव
सम्पूर्ण लोकनाडी तृतीय : अवधिज्ञान का संस्थानद्वार
२००८. रइयाणं भंते! ओही किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा! तप्पागारसंठिए पण्णत्ते। [२००८ प्र.] भगवन् ! नारकों का अवधि (ज्ञान) किस आकार (संस्थान) वाला बताया गया है ? [२००८ उ.] गौतम! वह तप्र के आकार का बताया गया है। २००९ [१] असुरकुमाराणं भंते! ० पुच्छा। गोयमा! पल्लगसंठिए।
१. (क) पण्णवणासुत्तं भा. १ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ४१५ से ४१७ तक
(ख) प्रज्ञापनासूत्र (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ७९० से ८०१ तक