Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२०४]
[प्रज्ञापनासूत्र] आहार करते हैं। ३. पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य
(१) कई जानते, देखते व आहार (३) कई जानते नहीं, देखते हैं। करते हैं।
और आहार करते हैं। (२) कई जानते हैं, देखते नहीं, (४) न देखते, न जानते और आहार करते हैं।
आहार करते हैं। ४. वैमानिक देव
(१) कई जानते, देखते और (२) कई नहीं जानते, नहीं आहार करते हैं।
देखते, आहार करते हैं। स्पष्टीकरण - नैरयिक और भवनवासीदेव एवं एकेन्द्रिय आदि जीव जिन पुद्गलों का आहार करते हैं, उन्हें नहीं जानते, क्योंकि उनका लोमाहार होने से अत्यन्त सूक्ष्मता के कारण उनके ज्ञान का विषय नहीं होता। वे देखते भी नहीं। क्योंकि वह दर्शन का विषय नहीं होता। अज्ञानी होने के कारण द्वीन्द्रिय सम्यग्ज्ञान से रहित होते हैं, अतएव उन पुद्गलों को भी वे नहीं जानते-देखते । उनका मति-अज्ञान भी इतना अस्पष्ट होता है कि स्वयं जो प्रक्षेपाहार वे ग्रहण करते हैं, उसे भी नहीं जानते। चक्षुरिन्द्रिय का अभाव होने से वे उन पुद्गलों को देख भी नहीं सकते। ___चतुरिन्द्रिय के दो भंग-कोई चतुरिन्द्रिय आहार्यमाण पुद्गलों को जानते नहीं, किन्तु देखते हैं, क्योंकि उनके चक्षुरिन्द्रिय होती है और आहार करते हैं। किन्हीं चतुरिन्द्रिय के आँख होते हुए भी अन्धकार के कारण उनके चक्षु काम नहीं करते, अत: वे देख नहीं पाते, किन्तु आहार करते हैं। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों में आहार्य पुद्गलों को जानने-देखने के सम्बन्ध में चार भंग पाए जाते हैं।
प्रक्षेपाहार की दृष्टि से चार भंग - (१) कोई जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं। पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और मनुष्य प्रक्षेपाहारी होते हैं, इसलिए इनमें जो सम्यग्ज्ञानी होते हैं, वे वस्तुस्वरूप के ज्ञाता होने के कारण प्रक्षेपाहार को जानते हैं तथा चक्षुरिन्द्रिय होने से देखते भी हैं और आहार करते हैं । यह प्रथम भंग हुआ। (२) कोई जानते नहीं हैं, देखते नहीं और आहार करते हैं । सम्यग्ज्ञानी होने से कोई-कोई जानते तो हैं, किन्तु अन्धकार आदि के कारण नेत्र के काम न करने से देख नहीं पाते । यह द्वितीय भंग हुआ। (३) कोई जानते नहीं हैं, किन्तु देखते हैं और आहार करते हैं। कोई-कोई मिथ्याज्ञानी होने से जानते नहीं हैं, क्योंकि उनमें सम्यग्ज्ञान नहीं होता, किन्तु वे चक्षुरिन्द्रिय के उपयोग से देखते हैं। यह तृतीय भंग हुआ। (४) कोई जानते भी नहीं, देखते भी नहीं, किन्तु आहार करते हैं । कोई मिथ्याज्ञानी होने से जानते नहीं तथा अन्धकार के कारण नेत्रों का व्याघात हो जाने के कारण देखते भी नहीं पर आहर करते हैं । यह चतुर्थ भंग हुआ।
लोमाहार की अपेक्षा से चार भंग – (१) कोई-कोई तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय एवं मनुष्य विशिष्ट अवधिज्ञान के कारण लोमाहार को भी जानते हैं और विशिष्ट क्षयोपशम होने से इन्द्रियपटुता अति विशुद्ध होने के कारण देखते भी १. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ४२० २. (क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ५४५
(ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. ५, पृ. ८३३-८३४ ३. (क) वही, भा. ५, पृ. ८३५ से ८३९
(ख) प्रज्ञापना. मलयगिरिवृत्ति, पत्र ५४५