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[अट्ठाईसवाँ आहारपद] प्रक्षेपाहार होता है ॥ ४ ॥ सभी प्रकार के देव ओज-आहारी और मनोभक्षी होते हैं। शेष जीव रोमाहारी और प्रक्षेपाहारी होते हैं ॥५॥
॥ अट्ठाईसवाँ आहारपद : प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
१. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ६१२ २. वही, भा. ५, पृ. ६१३ ३. सरीरेणोयाहारो तयाय फासेण लोम-आहारो। पक्खेवाहारो कावलिओ होइ नायव्वो ॥ १७१ ॥
ओयाहारा जीवा सव्वे अपज्जत्तगा मुणेयव्या । पज्जत्तगा य लोमे पक्खेवे होंति भइयव्या ॥ १७२ ॥ एगिदियदेवाणं नेरइयाणं च नत्थि पक्खेवो। सेसाणं जीवाणं संसारत्थाण पक्खेवो ॥ १७३ ॥ लोमाहारा एगिदिया उ नेरइय सुरगणा चेव। सेसाणं आहारो लोमे पक्खेवओ चेव ॥ ४ ॥ ओयाहारा मणभक्खिणो य सव्वे वि सुरगणा होति । सेसा हवंति जीवा लोमे पक्खेवओ चेव ॥५॥ - सूत्रकृतांग सु. २, अ. ३ नियुक्ति