Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र]
[१९५४ प्र.] भगवन् ! जीव साकारपश्यत्ता वाले होते हैं या अनाकारपश्यत्ता वाले होते हैं ? [१९५४ उ.] गौतम! जीव साकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि जीव साकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं ?
[उ.] गौतम! जो जीव श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी होते हैं, वे साकारपश्यत्ता वाले होते हैं और जो जीव चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी होते हैं, वे अनाकारपश्यत्ता वाले होते हैं। इस कारण से हे गौतम ! यों कहा जाता है कि जीव साकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं।
१९५५. णेरइया णं भंते! किं सागारपस्सी अणागारपस्सी ?
गोयमा! एवं चेव। णवरं सागारपासणयाए मणपजवणाणी केवलणाणी ण वुच्चति, अणागारपासणयाए केवलदंसणं णत्थि।
[१९५५ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव साकारपश्यत्ता वाले हैं या अनाकारपश्यत्ता वाले हैं?
[१९५५ उ.] गौतम ? पूर्ववत् (दोनों प्रकार के हैं।) परन्तु इनमें (नैरयिकों में) साकारपश्यत्ता के रूप में मनःपर्यायज्ञानी और केवलज्ञानी नहीं कहना चाहिए तथा अनाकरपश्यत्ता में केवयलदर्शन नहीं है।
१९५६. एवं जाव थणियकुमारा। [१९५६] इसी प्रकार (की वक्तव्यता) स्तनितकुमारों तक (कहनी चाहिए)। १९५७. [१] पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा! पुढविक्काइया सागारपस्सी, णो अणागारपस्सी। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! पुढविक्काइयाणं एगा सुयअण्णाणसागारपासणया पण्णत्ता, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चतिः । [१९५७-१ प्र.] पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में पूर्ववत् प्रश्न है। [१९५७-१ उ.] गौतम! पृथ्वीकायिक जीव साकारपश्यत्ता वाले हैं, अनाकारपश्यत्ता वाले नहीं हैं।
[प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव साकारपश्यत्ता वाले हैं, अनाकारपश्यत्ता वाले नहीं हैं ?
[उ.] गौतम! पृथ्वीकायिकों में एकमात्र श्रुत-अज्ञान (होने से) साकारपश्यत्ता कही है। इस कारण से हे गौतम ? ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक साकारपश्यत्ता वाले हैं, अनाकारपश्यत्ता वाले नहीं हैं।
[२] एवं जाव वणस्सइकाइया।