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________________ १६४] [प्रज्ञापनासूत्र] [१९५४ प्र.] भगवन् ! जीव साकारपश्यत्ता वाले होते हैं या अनाकारपश्यत्ता वाले होते हैं ? [१९५४ उ.] गौतम! जीव साकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि जीव साकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं ? [उ.] गौतम! जो जीव श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, केवलज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी होते हैं, वे साकारपश्यत्ता वाले होते हैं और जो जीव चक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी होते हैं, वे अनाकारपश्यत्ता वाले होते हैं। इस कारण से हे गौतम ! यों कहा जाता है कि जीव साकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं और अनाकारपश्यत्ता वाले भी होते हैं। १९५५. णेरइया णं भंते! किं सागारपस्सी अणागारपस्सी ? गोयमा! एवं चेव। णवरं सागारपासणयाए मणपजवणाणी केवलणाणी ण वुच्चति, अणागारपासणयाए केवलदंसणं णत्थि। [१९५५ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव साकारपश्यत्ता वाले हैं या अनाकारपश्यत्ता वाले हैं? [१९५५ उ.] गौतम ? पूर्ववत् (दोनों प्रकार के हैं।) परन्तु इनमें (नैरयिकों में) साकारपश्यत्ता के रूप में मनःपर्यायज्ञानी और केवलज्ञानी नहीं कहना चाहिए तथा अनाकरपश्यत्ता में केवयलदर्शन नहीं है। १९५६. एवं जाव थणियकुमारा। [१९५६] इसी प्रकार (की वक्तव्यता) स्तनितकुमारों तक (कहनी चाहिए)। १९५७. [१] पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा! पुढविक्काइया सागारपस्सी, णो अणागारपस्सी। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! पुढविक्काइयाणं एगा सुयअण्णाणसागारपासणया पण्णत्ता, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चतिः । [१९५७-१ प्र.] पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में पूर्ववत् प्रश्न है। [१९५७-१ उ.] गौतम! पृथ्वीकायिक जीव साकारपश्यत्ता वाले हैं, अनाकारपश्यत्ता वाले नहीं हैं। [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव साकारपश्यत्ता वाले हैं, अनाकारपश्यत्ता वाले नहीं हैं ? [उ.] गौतम! पृथ्वीकायिकों में एकमात्र श्रुत-अज्ञान (होने से) साकारपश्यत्ता कही है। इस कारण से हे गौतम ? ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक साकारपश्यत्ता वाले हैं, अनाकारपश्यत्ता वाले नहीं हैं। [२] एवं जाव वणस्सइकाइया।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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