Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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होगा, उसका उपभोग उतना ही मन्द होगा।
यही कारण है कि यहाँ विविध जीवों के विविध प्रकार के उपयोगों की तरतमता आदि का निरूपण किया गया है ।
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उपयोग का अर्थ होता है- वस्तु का परिच्छेद- परिज्ञान करने के लिए जीव जिसके द्वारा व्यापृत होता है, अथवा जीव का बोधरूप तत्त्वभूत व्यापार ।'
[ प्रज्ञापनासूत्र ]
तीसवां पद पश्यत्ता-पासणया है। उपयोग और पश्यत्ता दोनों जीव के बोधरूप व्यापार हैं, मूल में इन दोनों की कोई व्याख्या नहीं मिलती। प्राचीन पद्धति के अनुसार भेद ही इनकी व्याख्या है। आचार्य अभयदेवसूरि ने पश्यत्ता को उपयोगविशेष ही बताया है। किन्तु आगे चल कर स्पष्टीकरण किया है कि जिस बोध में कालिक अवबोध हो, वह पश्यत्ता है और जिस बोध में वर्तमानकालिक बोध हो, वह उपयोग है। यही इन दोनों में अन्तर है ।
जिस प्रकार उपयोग के मुख्य दो भेद - साकारोपयोग और अनाकारोपयोग किये हैं, उसी प्रकार पश्यत्ता के भी साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता, ये दो भेद हैं। किन्तु दोनों के उपर्युक्त लक्षणों के अनुसार मति - ज्ञान और मति- अज्ञान को साकारपश्यत्ता के भेदों में परिगणित नहीं किया, क्योंकि मतिज्ञान और मत्यज्ञान का विषय वर्तमानकालिक अविनष्ट पदार्थ ही बनता है। इसके अतिरिक्त अनाकारपश्यत्ता में अचक्षुदर्शन का समावेश नहीं किया गया है, इसका समाधान आचार्य अभयदेवसूरि ने यों किया है कि पश्यत्ता प्रकृष्ट ईक्षण है और प्रेषण तो केवल चक्षुदर्शन द्वारा ही सम्भव है, अन्य इन्द्रियों द्वारा होने वाले दर्शन में नहीं। अन्य इन्द्रियों की अपेक्षा चक्षु का उपयोग अल्पकालिक होता है जहां अल्पकालिक उपयोग होता है, वहाँ बोधक्रिया में शीघ्रता अधिक होती है, यही पश्यत्ता की प्रकृष्टता में कारण है।
आचार्य मलयगिरि ने आचार्य अभयदेवसूरि का अनुसरण किया है। उन्होंने स्पष्टीकरण किया है कि पश्यत्ता शब्द रूढ़ि के कारण साकार और अनाकार बोध का प्रतिपादक है। विशेष में यह समझना चाहिए कि जहाँ दीर्घकालिक उपयोग हो, वहीं त्रैकालिक बोध सम्भव है। मतिज्ञान में दीर्घकाल का उपयोग नहीं है, . इस कारण उससे त्रैकालिक बोध नहीं होता । अतः उसे 'पश्यत्ता' में स्थान नहीं दिया गया है।
उनतीसवें पद में सर्वप्रथम साकारोपयोग और अनाकारोपयोग, यों भेद बताये गये हैं। तत्पश्चात् इन दोनों के क्रमशः आठ और चार भेद किये गये हैं ।
साकारोपयोग और अनाकारोपयोग तथा साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता इन दोनों का अन्तर निम्नोक्त तालिका से स्पष्ट समझ में आ जाएगा।
१. उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेदं प्रति व्यापार्यते जीवोऽनेनेति उपयोगः । बोधरूपो जीवस्य तत्त्वभूतो व्यापारः ।
2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७१४
- प्रज्ञापना, मलयवृत्ति अ. रा. को. भा. २, पृ. ८६०.