Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ उनतीसवाँ उपयोगपद ]
[१९२८ प्र.] भगवन्! जीव साकरोपयुक्त होते है या अनाकारोपयुक्त होते हैं ?
[१९२८ उ.] गौतम! जीव साकारोपयोग से उपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयोग से भी उपयुक्त । [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं, कि जीव साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते
हैं ?
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[उ.] गौतम! जो जीव आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान तथा मतिअज्ञान, श्रुत-अज्ञान एवं विभंगज्ञान उपयोग वाले होते हैं, वे साकारोपयुक्त कहे जाते है और जो जीव चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन के उपयोग से युक्त होते हैं, वे अनाकारोपयुक्त कहे जाते हैं। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि जीव साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं ।
१९२९. णेरड्या णं भंते! किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ?
गोयमा ! णेरड्या सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ ?
गोयमा ! जे णं णेरड्या आभिणिबोहियणाण- सुय-ओहिणाण-मतिअण्णाण - सुयअण्णाणविभंगणाणोवउत्ता ते णं णेरड्या सागारोवउत्ता, जे णं णेरड्या चक्खुदंसण-अचक्खुदंसण- ओहिदंसणोवउत्ता ते णं णेरड्या अणागारोवउत्ता, से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि । [१९२९ प्र.] भगवन्! नैरयिक साकारोपयुक्त होते हैं या अनाकारोपयुक्त होते हैं ?
[१९२९ उ.] गौतम! नैरयिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं ।
[प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि नैरयिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं ?
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[उ.] गौतम! जो नैरयिक आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान और विभंगज्ञान के उपयोग से युक्त होते हैं, वे साकारोपयुक्त होते हैं और जो नैरयिक चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के उपयोग से युक्त होते हैं, वे अनाकारोपयुक्त होते हैं। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है नैरयिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं।
१९३०. एवं जाव थणियकुमारा ।
[१९३०] इसी प्रकार का कथन स्तनितकुमारों तक करना चाहिए।
१९३१. पुढविक्वाइयाणं पुच्छा ।
गोयमा ! तहेव जाव जे णं पुढविकाइया मतिअण्णाण - सुयअण्णाणोवउत्ता ते णं पुढविकाइया सागारोवउत्ता, जेणं पुढविकाइया अचक्खुदंसणोवउत्ता ते णं पुढविक्काइया अणागारोवउत्ता, से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव वणस्सइकाइया ।
[१९३१ प्र.] पृथ्वीकायिकों के विषय में इसी प्रकार की पृच्छा है।