Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
[छब्बीसवाँ कर्मवेदबन्धपद]
का बन्धक होता है।
(९) अथवा बहुत से सात के, बहुत से आठ के, बहुत से छह के और बहुत से एक के बन्धक होते हैं।
इस प्रकार समुच्चय जीवों के विषय में ये (उपर्युक्त) ९ भंग होते है। छह और एक प्रकृति के बन्ध का तथा इन दोनों के अभाव में सात अथवा आठ प्रकृतियों के बन्ध का कारण पूर्वोक्त युक्ति से समझ लेना चाहिए।
एकेन्द्रियों और मनष्यों के सिवाय शेष नैरयिक आदि दणडकों के तीन भंग होते हैं। एकेन्द्रियों में कोई विकल्प (भंग) नहीं होता, अर्थात् वे सदैव बहुत संख्या में होते हैं, इसलिए बहुत सात के और बहुत आठ के बन्धक ही होते हैं । मनुष्यों में २७ भंगों का चार्ट इस प्रकार है - (ब. से बहुत और ए. से एक समझना चाहिए।)
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ । =असंयोगी-१ भंग १ | सभी ब. एक ब. ब. ब. एक ब. ब. ब. एक ब. ब. -द्विसंयोगी ६ भंग
क्रम
८
९ १०
११ । ब. एक एक | ब. ब. ब. | ब. ब. एक | ब. एक. ब.
- आठ और छह बन्धक के त्रिकसंयोगी भंग ४
१२
१३ | ब. एक एक | ब. ब.
१४ ब. एक ब.
१५ एक. ब.
३
ब. ब.
= आठ और एक के बन्धक के त्रिकसंयोगी भंग ४
१६ | ब. एक
१७ ब.
१८ १९ ब.ब. ब. एक | ब. एक. ब.
४
एक | ब.
- सात और एक के बन्धक के त्रिकसंयोगी भंग ४
.
२० २१ । २२ । २३ ए. ए. ए.ब. ब. ब. ब.ब. ब. ए. ए.ब. ब. ब. ए.
ब.
-८,६, १ बन्धक चतुष्कसंयोगी भंग ८
२४ २५ २६
२७
- | ब. ब. ए. ब. ब. ए. ब. ब. ब. ए. ए. ब. ब. ए. ब. ए.
वेदनीयकर्म के वेदन के समय अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध की प्ररूपणा
१७८३. [१] जीवे णं भंते! वेयणिजं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा।
[१७८३-१ प्र.] भगवन् ! (एक) जीव वेदनीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? १. (क) पण्णवणासुत्ता भा. १ (मू.पा.टि.) पृ. ३८९
(ख) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, (अभिधान राजेन्द्रकोष भा. ३) पद 26, पृ. २९४-२९५ (ग) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ५०१ सक ५११ तक ..