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[अट्ठाईसा आहारपद] होती है।
१८३७. सहस्सारे णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं। [१८३७ प्र.] सहस्रारकल्प के विषय में पृच्छा है।
[१८३७ उ.] गौतम! जघन्य सत्तरह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष में उनको आहारेच्छा उत्पन्न होती है।
१८३८. आणए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एगूणवीसाए वाससहस्साणं। [१८३८ प्र.] आनतकल्प के विषय में आहारसम्बन्धी प्रश्न है। [१८३८ उ.] गौतम! जघन्य अठारह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट उन्नीस हजार वर्ष में आहारेच्छा पैदा होती है। १८३९. पाणए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं एगूणवीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं वीसाए वाससहस्साणं। [१८३९ प्र.] प्राणतकल्प के देवों की आहारविषयक पृच्छा है।
[१८३९ उ.] गौतम! वहाँ जघन्य उन्नीस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट बीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
१८४०. आरणे णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं वीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एकवीसाए वाससहस्साणं। [१८४० प्र.] आरणकल्प में आहारेच्छा सम्बन्धी पूर्ववत् प्रश्न है। [१८४० उ.] गौतम! जघन्य बीस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट इक्कीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। १८४१. अच्चुए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं एक्कवीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं बावीसाए वाससहस्साणं। [१८४१ प्र.] भगवन्! अच्युतकल्प के देवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है? [१८४१ उ.] गौतम! जघन्य २१ हजार वर्ष और उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष मे उनको आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। १८४२. हेट्टिमहेट्ठिमगेवेजगाणं पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं बावीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं तेवीसाए वाससहस्साणं।एवं सव्वत्थ सहस्साणि भाणियव्याणि जाव सव्वट्ठ।
[१८४२ प्र.] भगवन्! अधस्तन-अधस्तन (सबसे निचले) ग्रैवेयक देवों की आहारसम्बन्धी पृच्छा है।