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________________ ११८] [अट्ठाईसा आहारपद] होती है। १८३७. सहस्सारे णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं। [१८३७ प्र.] सहस्रारकल्प के विषय में पृच्छा है। [१८३७ उ.] गौतम! जघन्य सत्तरह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट अठारह हजार वर्ष में उनको आहारेच्छा उत्पन्न होती है। १८३८. आणए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अट्ठारसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एगूणवीसाए वाससहस्साणं। [१८३८ प्र.] आनतकल्प के विषय में आहारसम्बन्धी प्रश्न है। [१८३८ उ.] गौतम! जघन्य अठारह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट उन्नीस हजार वर्ष में आहारेच्छा पैदा होती है। १८३९. पाणए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं एगूणवीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं वीसाए वाससहस्साणं। [१८३९ प्र.] प्राणतकल्प के देवों की आहारविषयक पृच्छा है। [१८३९ उ.] गौतम! वहाँ जघन्य उन्नीस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट बीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। १८४०. आरणे णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं वीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं एकवीसाए वाससहस्साणं। [१८४० प्र.] आरणकल्प में आहारेच्छा सम्बन्धी पूर्ववत् प्रश्न है। [१८४० उ.] गौतम! जघन्य बीस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट इक्कीस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। १८४१. अच्चुए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं एक्कवीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं बावीसाए वाससहस्साणं। [१८४१ प्र.] भगवन्! अच्युतकल्प के देवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है? [१८४१ उ.] गौतम! जघन्य २१ हजार वर्ष और उत्कृष्ट २२ हजार वर्ष मे उनको आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। १८४२. हेट्टिमहेट्ठिमगेवेजगाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं बावीसाए वाससहस्साणं, उक्कोसेणं तेवीसाए वाससहस्साणं।एवं सव्वत्थ सहस्साणि भाणियव्याणि जाव सव्वट्ठ। [१८४२ प्र.] भगवन्! अधस्तन-अधस्तन (सबसे निचले) ग्रैवेयक देवों की आहारसम्बन्धी पृच्छा है।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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