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[प्रज्ञापनासूत्र]
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गोयमा! जहण्णेणं दिवसपुहत्तस्स सातिरेगस्स, उक्कोसेणं सातिरेगाणं दोण्हं वाससहस्साणं। [१८३१ प्र.] ईशानकल्प-सम्बन्धी पूर्ववत् प्रश्न है।
[१८३१ उ.] गौतम! जघन्य कुछ अधिक दिवस पृथक्त्व में और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो हजार वर्ष में (उनको आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।)
१८३२. सणंकुमाराणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दोण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं। [१८३२ प्र.] सनत्कुमार-सम्बन्धी पूर्ववत् प्रश्न है। [१८३२ उ.] गौतम जघन्य दो हजार वर्ष में और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है। १८३३. माहिदे पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दोण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं, उक्कोसेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं। [१८३३ प्र.] माहेन्द्रकल्प के विषय में पूवर्वत् प्रश्न है।
[१८३३ उ.] गौतम! जघन्य कुछ अधिक दो हजार वर्ष में और उत्कृष्ट कुछ अधिक सात हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
१८३४. बंभलोए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं दसण्हं वाससहस्साणं। [१८३४ प्र.] गौतम! ब्रह्मलोक-सम्बन्धी प्रश्न है।
[१८३४ उ.] गौतम! (वहाँ) जघन्य सात हजार वर्ष में और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।
१८३५. लंतए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं चोद्दसण्हं वाससहस्साणं आहारट्टे समुप्पजइ। [१८३५ प्र.] लान्तककल्प-सम्बन्धी पूर्ववत् पृच्छा है।
[१८३५ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष में उन्हें आहाराभिलाषा उत्पन्न होती हैं।
१८३६. महासुक्के णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं चोद्दसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं। [१८३६ प्र.] महाशुक्रकल्प के सम्बन्ध में प्रश्न है। [१८३६ उ.] गौतम! वहाँ जघन्य चोदह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट सत्तरह हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न