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________________ [प्रज्ञापनासूत्र] [११७ गोयमा! जहण्णेणं दिवसपुहत्तस्स सातिरेगस्स, उक्कोसेणं सातिरेगाणं दोण्हं वाससहस्साणं। [१८३१ प्र.] ईशानकल्प-सम्बन्धी पूर्ववत् प्रश्न है। [१८३१ उ.] गौतम! जघन्य कुछ अधिक दिवस पृथक्त्व में और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो हजार वर्ष में (उनको आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है।) १८३२. सणंकुमाराणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दोण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं। [१८३२ प्र.] सनत्कुमार-सम्बन्धी पूर्ववत् प्रश्न है। [१८३२ उ.] गौतम जघन्य दो हजार वर्ष में और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है। १८३३. माहिदे पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दोण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं, उक्कोसेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं सातिरेगाणं। [१८३३ प्र.] माहेन्द्रकल्प के विषय में पूवर्वत् प्रश्न है। [१८३३ उ.] गौतम! जघन्य कुछ अधिक दो हजार वर्ष में और उत्कृष्ट कुछ अधिक सात हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। १८३४. बंभलोए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं सत्तण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं दसण्हं वाससहस्साणं। [१८३४ प्र.] गौतम! ब्रह्मलोक-सम्बन्धी प्रश्न है। [१८३४ उ.] गौतम! (वहाँ) जघन्य सात हजार वर्ष में और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न होती है। १८३५. लंतए णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं चोद्दसण्हं वाससहस्साणं आहारट्टे समुप्पजइ। [१८३५ प्र.] लान्तककल्प-सम्बन्धी पूर्ववत् पृच्छा है। [१८३५ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष में और उत्कृष्ट चौदह हजार वर्ष में उन्हें आहाराभिलाषा उत्पन्न होती हैं। १८३६. महासुक्के णं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं चोद्दसण्हं वाससहस्साणं, उक्कोसेणं सत्तरसण्हं वाससहस्साणं। [१८३६ प्र.] महाशुक्रकल्प के सम्बन्ध में प्रश्न है। [१८३६ उ.] गौतम! वहाँ जघन्य चोदह हजार वर्ष में और उत्कृष्ट सत्तरह हजार वर्ष में आहाराभिलाषा उत्पन्न
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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