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[छब्बीसवाँ कर्मवेदबन्धपद] सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधए य एगविहबंधए य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधए य एगविहबंधगा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य एगविहबंधए य ८ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य एगविहबंधगा य ९, एवं एते नव भंगा।
[१७७८ प्र.] भगवन् ! (बहुत) जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्म प्रकृतियाँ बाँधते हैं ?
[१७७८ उ.] गौतम! १. सभी जीव सात या आठ कर्मप्रकृतियों के बंधक होते हैं, २. अथवा बहुत जीव सात या आठ के बंधक होते हैं और एक छह का बंधक होता है, ३. अथवा बहुत जीव सात, आठ और छह के बंधक होते हैं. ४ अथवा बहत जीव सात के और आठ के तथा कोई एक प्रकति का बंधक होता है.५. अ
अथवा बहुत जीव सात, आठ और एक के बंधक होते हैं, ६. या बहुत जीव सात के तथा आठ के, एक जीव छह का और एक जीव एक का बंधक होता है, ७. अथवा बहुत जीव सात के या आठ के, एक जीव छह का और बहुत जीव एक के बंधक होते है, ८. अथवा बहुत जीव सात के, आठ के, छह के तथा एक-एक का बंधक होता है। ९. अथवा बहुत जीव आठ के, सात के, छह के और एक के बंधक होते हैं । इस प्रकार ये कुल नौ भंग हुए।
१७७९. अवसेसाणं एगिदिय-मणूसवजाणं तियभंगो जाव वेमाणियावं। [१७७९] एकेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों को छोड़कर शेष जीवों यावत् वेमानिकों के तीन भंग कहने चाहिए। १७८०. एगिंदिया णं सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य। [१७८०] (बहुत-से) एकेन्द्रिय जीव सात के और आठ के बन्धक होते हैं। १७८१. मणूसाणं पुच्छा ।
गोयमा! सव्वे वि ताव होजा सत्तविहबंधगा १ अहवा सत्तवहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधए य, एवं छव्विहबंधएण वि समं दो भंगा ५ एगविहबंधएण वि समं दो भंगा ७ अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधए य छब्बिहबंधए य चउभंगो ११ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य एगविहबंधए य चउभंगो १५ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधगे य एगविहबंधए य चउभंगो १९ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए य एगविहबंधए य भंगा अट्ठ २७ एवं एते सत्तावीसं भंगा।
[१७८१ प्र.] पूर्ववत् मनुष्यों के सम्बन्ध में प्रश्न है।
[१७८१ उ.] गौतम! (१) सभी मनुष्य सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, (२) अथवा बहुत से सात और एक आठ कम्रप्रकृति बांधता है, (३) अथवा बहुत से मनुष्य सात के और एक छह का बन्धक है, (४-५) इसी प्रकार छह के बन्धक के साथ भी दो भंग होते हैं, (६-७) तथा एक के बन्धक के साथ भी दो भंग होते हैं, (८११) अथवा बहुत से सात के बन्धक, एक आठ का और एक छह का बन्धक, यों चार भंग हुए, (१२-१५) अथवा बहुत से सात के बन्धक, एक आठ का और एक मनुष्य एक प्रकृति का बन्धक, यों चार भंग हुए, (१६-१९) अथवा बहुत से सात के बन्धक तथा एक छह का और एक, एक का बन्धक, इसके भी चार भंग हुए, (२०-२७)