Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[पच्चीसवाँ कर्मबन्धवेदपद] वेदन करते हैं, क्योंकि उनके चार घातिकर्मों का उदय नहीं होता।
४. समुच्चय जीव के समान एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से मनुष्य के विषय में भी ऐसा ही कहना चाहिए। अर्थात् – एक या बहुत मनुष्य वेदनीयकर्म का बन्ध करते हुए सात, आठ या चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं। ___५. मनुष्य के सिवाय शेष सभी नारक आदि जीव एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से वेदनीय कर्म का बन्ध करते हुए नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं।'
॥ प्रज्ञापना भगवती का पच्चीसवाँ कर्मबन्धवेदपद सम्पूर्ण ॥
१. (क) पण्णवणासुत्तं भाग १ (मूलपाठ-टिप्पण) पृ. ३८८
(ख) प्रज्ञापनासूत्र भाग ५ (प्रमेयबोधिनी टीका) पृ. ४८९-४९०