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[ प्रज्ञापनासूत्र ]
[१७७३-१ प्र.] भगवन्! वेदनीयकर्म को बांधता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? [१७७३-१ उ.] गौतम! वह सात ( कर्मप्रकृतियों) का, आठ का अथवा चार (कर्मप्रकृतियों) का वेदन
करता है।
[ २ ] एवं मणूसे वि। सेसा णेरड्याई एगत्तेण वि पुहत्तेण वि णियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेति, जाव वेमाणिया ।
[१७७३-२] इसी प्रकार मनुष्य के ( द्वारा कर्मप्रकृतियों के वेदन के) सम्बन्ध में ( कहना चाहिए ) । शेष नैरयिकों से लेकर वैमानिक पर्यन्त एकत्व की विवक्षा से भी और बहुत्व की विवक्षा से भी जीव नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं।
१७७४. [ १ ] जीवाणं भंते! वेदणिज्जं कम्मं बन्धमाणा कति कम्मपगडीओ वेदेति ?
गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा य १ अहवा अट्ठविहवेदगा य चउव्विहवेदगा च सत्तविहवेदगे य २ अहवा अट्ठविहवेदगा य य चउव्विहवेदगा य सत्तविहवेदगा य ३ ।
[१७७४-१ प्र.] भगवन् ! बहुत जीव वेदनीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं ?
[१७७४-१ उ.] गौतम! १. सभी बहुत जीव वेदनीयकर्म को बांधते हुए आठ या चार कर्मप्रकृतियों के वेदक होते है, २. अथवा बहुत जीव आठ या चार कर्मप्रकृतियों के और कोई एक जीव सात कर्मप्रकृतियों का वेदक होता है, ३. अथवा बहुत जीव आठ, चार या सात कर्मप्रकृतियों के वेदक होते है ।
[२] एवं मणूसा वि भाणियव्वा ।
[१७७४-२] इसी प्रकार बहुत से मनुष्यों द्वारा वेदनीयकर्मबन्ध के समय वेदन सम्बन्धी कथन करना
चाहिए ।
॥ पण्णवणाए भगवतीए पंचवीसइमं कम्मबंधवेदपयं समत्तं ॥
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विवेचन - कर्मबन्ध के समय कर्मवेदन की चर्चा के पांच निष्कर्ष १. समुच्चय जीव के सम्बन्ध में उल्लिखित वक्तव्यतानुसार नैरयिक, असुरकुमारादि भवनपति, पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक भी एकत्व और बहुत्व की विवक्षा से ज्ञानावरणीयकर्म का बन्ध करते हुए नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं।
२. इसी प्रकार वेदनीय को छोड़कर शेष सभी कर्मों (दर्शनावरणीय, नाम गोत्र, आयुष्य, मोहनीय और अन्तराय) के सम्बन्ध में समझ लेना चाहिए।
३. समुच्चय जीव एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा से वेदनीयकर्म का बन्ध करते हुए सात, आठ अथवा चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं । इसका कारण यह है कि उपशान्तमोह और क्षीणमोह जीव सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं, क्योंकि उनके मोहनीयकर्म का वेदन नहीं होता। मिथ्यादृष्टिगुणस्थान से लेकर सूक्ष्मसम्पराय (दसवें गुणस्थान) पर्यन्त जीव आठों कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं और सयोगी केवली चार अघाति कर्मप्रकृतियों का ही