Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र]
[१०७
अवगाहन किये हुए पुद्गलों का पूर्णरूपेण (सर्वात्मना) आहार करते हैं।
१८०२. णेरइया णं भंते! सव्वओ आहारेंति, सव्वओ परिणामेंति, सव्वओ ऊससंति, सव्वओ णीससंति, अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं ऊससंति अभिक्खणं णीससंति, आहच्च आहारेंति, आहच्च परिणामेंति आहच्च ऊससंति आहच्च णीससंति?
हंता गोयमा! णेरइया सव्वओ आहारेंति एवं तं चेव जाव आहच्च णीससंति।
[१८०२ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक सर्वतः (समग्रता से) आहार करते हैं ? पूर्णरूप से परिणत करते हैं ? सर्वतः उच्छ्वास तथा सर्वत: निःश्वास लेते हैं ? बार-बार आहार करते हैं ? बार बार परिणत करते हैं ? बार-बार उच्छ्वास एवं निःश्वास लेते हैं ? अथवा कभी-कभी आहार करते हैं? कभी-कभी परिणत करते हैं ? और कभीकभी उच्छ्वास एवं निःश्वास लेते हैं ? ___ [१८०२ उ.] हाँ, गौतम ? नैरयिक सर्वत: आहार करते हैं, इसी प्रकार वही पूर्वोक्तवत् यावत् कभी-कभी निःश्वास लेते हैं।
१८०३. णेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते णं तेसिं पोग्गलाणं सेयालंसि कतिभागं आहारेंति कतिभागं आसाएंति ?
गोयमा! असंखेजइभागं आहारेंति अणंतभागं अस्साएंति।
[१८०३ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों का आगामी काल में कितने भाग का आहार करते हैं और कितने भाग का आस्वादन करते हैं?
[१८०३ उ.] गौतम! वे असंख्यातवें भाग का आहार करते हैं और अनन्तवें भाग का आस्वादन करते हैं। १८०४. णेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेति णो सव्वे आहारेंति ? गोयमा! ते सव्वे अपरिसेसिए आहारेंति।
[१८०४ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या उन सबका आहार कर लेते हैं, अथवा सबका आहार नहीं करते हैं? __ [१८०४ उ.] गौतम! शेष बचाये बिना उन सबका आहार कर लेते हैं।
१८०५. णेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हति ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुजो २ परिणमंति?
गोयमा! सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए अणि?त्ताए अकंतत्ताए अप्पियत्ताए असुभत्ताए अमणुण्णत्ताए अमणामत्ताए अणिच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए अहत्ताए णो उद्धृत्ताए दुक्खत्ताए णो सुहत्ताए एएसिं (ते तेसिं) भुजो भुजो परिणमंति।
[१८०५ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं, वे उन पुद्गलों को बारबार किस रूप में परिणत करते हैं?