Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] [७] तेइंदयजाइणामए णं जहण्णेणं एवं चेव, उक्कोसेणं, अठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा०।
[१७०२-७ प्र.] त्रीन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति-सम्बन्धी पृच्छा है।
[१७०२-७ उ.] इसकी जघन्य स्थिति पूर्ववत् है। उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है।
[८] चउरिदियजाइणामए णं० पुच्छा।
जहण्णेणं सागरोवमस्स नव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा०।
[१७०२-८ प्र.] चतुरिन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न है।
[१७०२-८ उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ९/३५ भाग . की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है।
[९] पंचेंदियजाइणामए णं० पुच्छा।
गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओमस्स असंखेजभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा०।।
[१७०२-९ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है? - .
[१७०२-९ उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २/७ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है।
[१०] ओरालियसरीरणामए वि एवं चेव। [१७०२-१०] औदारिक-शरीर-नामकर्म की स्थिति भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। [११] वेउव्वियसरीरणामए णं भंते !० पुच्छा।
गोयमा !जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा०।
[१७०२-११ प्र.] भगवन् ! वैक्रिय-शरीर-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ?
[१७०२-११ उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के २७ . भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ वर्ष का है।
[१२] आहारगसरीरणामए जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ; उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ।
[१७०२-१२] आहारक-शरीर-नामकर्म की जघन्य स्थिति अन्त:सागरोपम कोडाकोडी की है और उत्कृष्ट