Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र]
[७९
मणुस्सी वि बंधइ, णो देवो बंधइ, णो देवी बंधइ।
[१७४९ प्र.] भगवन् ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को क्या नैरयिक बांधता है, यावत् देवी बांधती है?
[१७४९ उ.] गौतम! उसे नारक नहीं बांधता, तिर्यञ्च बांधता है, किन्तु तिर्यञ्चिनी, देव या देवी नहीं बांधती, मनुष्य बांधता है तथा मनुष्य स्त्री भी बांधती है।
१७५०. केरिसए णं भंते! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधइ ?
गोयमा! कम्मभूमए वा कम्मभूमगपलिभागी वा सण्णी पंचेंदिए सव्वाहिं पजत्तीहिं पजत्तए सागारे जागरे सुतोवउत्ते मिच्छट्ठिी परमकिण्हलेस्से उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे, एरिसए णं गोयमा! तिरिक्खजोणिए उक्कोसकालठितीयं आउअं कम्मं बंधइ।
[१७५० प्र.] भगवन्! किस प्रकार का तिर्यञ्च उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है ?
[१७५० उ.] गौतम! जो कर्मभूमि में उत्पन्न हो अथवा कर्मभूमिज के समान हो, संज्ञीपंचेन्द्रिय, सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकारोपयोग वाला हो, जाग्रत हो, श्रुत में उपयोगवान् मिथ्यादृष्टि, परमक़ष्णलेश्यावान् एवं उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला हो, ऐसा तिर्यञ्च उत्कृष्ट स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है ।
१७५१. केरिसए णं भंते! मणूसे उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधइ ?
गोयमा! कम्मभूमगे वा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ते सम्मद्दिट्टी वा मिच्छद्दिट्टी वा कण्हलेसे वा सुक्कलेसे वा णाणी वा अण्णाणी वा उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे वा तप्पाउग्गाविसुज्झमाणपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा! मणूसे उक्कोसकालठिईयं आउयं कम्मं बंधइ।
[१७५१ प्र.] भगवन्! किस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है ?
[१७५१ उ.] गौतम! जो कर्मभूमिज हो अथवा कमभूमिज के सदृश हो यावत् श्रुत में उपयोग वाला हो, सम्यग्दृष्टि हो अथवा मिथ्यादृष्टि हो, कृष्णलेश्यी हो या शुक्ललेश्यी हो, ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, उत्कृष्ट संक्लिष्ट परिणाम वाला हो, अथवा तत्प्रयोग्य विशुद्ध होते हुए परिणाम वाला हो, हे गौतम! इस प्रकार का मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले आयुष्यकर्म को बांधता है।
१७५२. केरिसिया णं भंते! मणूसी उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधइ ?
गोयमा! कम्मभूमिगा वा कम्मभूमगपलिभागी वा जाव सुतोवउत्ता सम्मद्दिट्ठि सुक्कलेस्सा तप्पाउग्गविसुज्झमाणपरिणामा एरिसिया णं गोयमा! मणुस्सी उक्कोसकालठितीयं आउयं कम्मं बंधइ।
[१७५२ प्र.] भगवन्! किस प्रकार की मनुष्य-स्त्री उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले आयुष्यकर्म को बांधती है ? [१७५२ उ.] गौतम! जो कर्मभूमि में उत्पन्न हो अथवा कर्मभूमिजा के समान हो यावत् श्रुत में उपयोग वाली