Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र]
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[३] एगिदिया णं भंते! सम्मामिच्छत्तवेयणिजस्स (कम्मस्स) किं बंधंति ? गोयमा! णत्थि किचि बंधंति ? [१७०८-३ प्र.] भगवन्! एकेन्द्रिय जीव सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय-कर्म) कितने काल तक का बांधते हैं ? [१७०८-३ उ.] गौतम! वे किसी काल का नहीं बांधते । [४] एगिंदिया णं भंते! कसायबारसगस्स किं बंधंति ?
गोयमा? जहण्णेणं सागरोवमस्स चत्तारि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधति ।
[१७०८-४ प्र.] भगवन्! एकेन्द्रिय जीव कषायद्वादशक का कितने काल का बन्ध करते हैं ?
[१७०८-४ उ.] गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ४/७ भाग और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बांधते हैं।
[५] एवं कोहसंजलणाए वि जाव लोभसंजलणाए वि । [१७०८-५] इसी प्रकार यावत् संज्वलन क्रोध से लेकर यावत् संज्वलन लोभ तक बांधते हैं । [६] इत्थिवेयस्स जहा सायावेयणिजस्स (सु. १७०७ [१])। [१७०८-६] स्त्रीवेद का बन्धकाल सातावेदनीय (सू. १७०७-१ में उक्त) के बन्धकाल के समान जानना।
[७] एगिंदिया पुरिसवेदस्स कम्मस्स जहण्णेणं सागरोवमस्सं एकं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
[१७०८-७] एकेन्द्रिय जीव जघन्यतः पुरुषवेदकर्म का पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का १/५ भाग बांधते हैं और उत्कृष्टतः वही १/७ भाग पूरा बांधते हैं।
[८] एगिंदिया णपुंसगवेदस्स कम्मस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति।
[१७०८-८] एकेन्द्रिय जीव नपुंसकवेदकर्म का जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम का १/७ भाग बांधते हैं और उत्कृष्ट वही २/७ भाग परिपूर्ण बाँधते हैं।
[९] हास-रतीए जहा पुरिसवेयस्स (सु. १७०८ [७])। [१७०८-९] हास्य और रति का बन्धकाल पुरुषवेद (सू. १७०८-७ में उक्त) के समान जानना। [१०] अरति-भय-सोग-दुगुंछाए जहा णपुंसगवेयस्स (सु. १७०८ [८])। [१७०८-१०]अरति, भय, शोक, और जुगुप्सा का बन्धकाल नपुंसकवेद के समान जानना चाहिए।