Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र]
[३१ गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तं जहा - तित्तरसणामे जाव महुररसणामे। [१६९४-११ प्र.] भगवन् ! रसनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [१६९४-११ उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा – तिक्तरसनाम यावत् मधुररसनामकर्म। [१२] फासणमे णं० पुच्छा। गोयमा! अट्ठविहे पण्णत्ते। तं जहा - कक्खडफासणामे जाव लुक्खफासणामे। [१६९४-१२] भगवन् ! स्पर्शनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [१६९४-१२] गौतम ! वह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा – कर्कशस्पर्शनाम यावत् रूक्षप्शनामकर्म। [१३] अगुरुलहुअणामे एगागारे पण्णत्ते। [१६९४-१३] अगुरूलघुनाम एक प्रकार का कहा गया है। [१४] उवघायणामे एगागारे पण्णत्ते। [१६९४-१४] उपघातनाम एक ही प्रकार का कहा गया है। [१५] पराघायणामे एगागारे पण्णत्ते। [१६९४-१५] पराघातनाम एक प्रकार का कहा है। [१६] आणुपुव्विणामे चउव्विहे पण्णत्ते। तं जहा - णेरइयाणुपुव्विणाम जाव देवाणुपुविणाम। [१६९४-१६] आनुपूर्वीनामकर्म चार प्रकार का कहा गया है, यथा - नैरयिकानुपूर्वीनाम यावत् देवानुपूर्वीनामकर्म। [१७] उस्सासणामे एगागारे पण्णत्ते ।। [१६९४-१७] उच्छ्वासनाम एक प्रकार का कहा गया है।
[१८] सेसाणि सव्वाणि एगागाराइं पण्णत्ताई जाव तित्थगरणामे । णवरं विहायगतिणामे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा - पसत्थविहायगतिणामे य अपसत्थविहायगतिणामे य ।
[१६९४-१८] शेष सब तीर्थकरनामकर्म तक एक-एक प्रकार के कहे है। विशेष यह है कि विहायोगतिनाम दो प्रकार का कहा है, यथा - प्रशस्तविहायोगतिनाम और अप्रशस्तविहायोगतिनाम ।
१६९५. [१] गोए णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - उच्चागोए य णीयगोए य। [१६९५-१ प्र.] भगवन् ! गोत्रकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [१६९५-१ उ.] गौतम! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा - उच्चगोत्र और नीचगोत्र । [२] उच्चागोए णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा! अट्ठविहे पण्णत्ते। तं जहा - जाइविसिट्ठया जाव इस्सरियविसिट्ठया।