Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] उनके उदय से मोहनीयकर्म का वेदन किया जाता है। गौतम! यह है- मोहनीयकर्म और हे गौतम! यह मोहनीयकर्म का यावत् पंचविध अनुभाव कहा गया है ॥ ४॥
१६८३. आउअस्स णं भत्ते! कम्मस्स जीवेणं० तहेव पुच्छा।
गोयमा! आउअस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव चउव्विहे अणुभावे पण्णत्ते। तं जहा–णेरइयाउए १ तिरियाउए २ मणुयाउए ३ देवाउए ४। जं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणाम वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं आउयं कम्मं वेदेइ । एस णं गोयमा! आउए कम्मे। एस णं गोयमा! आउअस्स कम्मस्स जाव चउव्विहे पण्णत्ते ५।
[१६८३ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध......यावत् आयुष्यकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। . [१६८३ उ.] गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् आयुष्यकर्म का चार प्रकार का अनुभाव कहा गया है, यथा१. नारकायु, २. तिर्यंचायु, ३. मनुष्यायु और ४. देवायु।
जिस पुद्गल अथवा पुद्गलों का, पुद्गल-परिणाम का अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का या उनके उदय से आयुष्यकर्म का वेदन किया जाता है, गौतम! यह है- आयुष्यकर्म और यह आयुष्यकर्म का यावत् चार प्रकार का अनुभाव कहा गया है ॥५॥
१६८४. [१] सुभणामस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं० पुच्छा।
गोयमा! सुभणामस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते । तं जहां – इट्ठा सद्दा १ इट्ठा रूवा २ इट्ठा गंधा ३ इट्ठा रसा ४ इट्ठा फासा ५ इट्ठा गती ६ इट्ठा ठिती ७ इट्टे लावणे ८ इट्ठा जसोकित्ती ९ इट्टे उट्ठाण-कम्म-बल-विरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे १० इट्ठस्सरया ११ कंतस्सरया १२ पियस्सरया १३ मणुण्णस्सरया १४। तं वेएइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गल-परिणाम वा वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम, तेसिं वा उदएणं सुभणामं कम्मं वेदेइ। एस णं गोयमा! सुभनामे कम्मे। एस णं गोयमा! सुभणामस्स कम्मस्स जाव चोद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते।
। [१६८४-१ प्र.] भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का कितने प्रकार का अनुभाव कहा गया है ? इत्यादि प्रश्न।
[१६८४-१ उ.] गौतम! जीव के द्वारा बद्ध यावत् शुभ नामकर्म का चौदह प्रकार अनुभाव कहा गया है। यथा - (१) इष्ट शब्द, (२) इष्ट रूप, (३) इष्ट गन्ध, (४) इष्ट रस, (५) इष्ट स्पर्श, (६) इष्ट गति, (७) इष्ट स्थिति, (८) इष्ट लावण्य, (९) इष्ट यशोकीर्ति, (१०) इष्ट उत्थान कर्म-बल-वीर्य-पुरुषकार-पराक्रम, (११) इष्ट-स्वरता, (१२) कान्त-स्वरता, (१३) प्रिय-स्वरता और (१४) मनोज्ञ-स्वरता। . जो पुद्गल अथवा पुद्गलों का या पुद्गल-परिणाम का अथवा स्वभाव से पुद्गलों के परिणाम का वेदन किया जाता है अथवा उनके उदय से शुभनामकर्म को वेदा जाता है, गौतम! यह है शुभनामकर्म तथा गौतम! यह